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सुकेत रियासत से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास, सुभद्रा और बलराम संग यहां आते हैं भगवान जगन्नाथ!

मंडी के जंगमबाग का राधा कृष्ण मंदिर निर्माण सोलवीं सदी में तत्कालीन सेन वंशज के राजा श्याम सेन द्वारा किया गया था. उनकी पत्नी नित्य अपने रथ में बैठकर राधा-कृष्ण की पूजा करने यहां आया करती थी.

famous radha krishna temple in Jangambagh
सुकेत रियासत से जुड़ा है इस मंदिर का इतिहास

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Published : Apr 17, 2020, 5:32 PM IST

मंडी: छोटी काशी मंडी में बहुत से ऐसे मंदिर हैं, जहां कई देवी देवता वास करते हैं. हर देवी देवता को अपने चमत्कारों के लिए जाना जाता है. ऐसा ही एक मंदिर है जो कि सुकेत रियासत के समय का है. यह मंदिर राधा कृष्ण को समर्पित है.

कहा जाता है कि यहां पर शुकदेव मुनि के दर्शनों के लिए एक जंगम महात्मा आए और पूर्व की ओर कुछ दूरी पर स्थित ताम्रगिरि की तलहटी में निवास कर तप करने लगे. यहां मौजूद राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण सोलवीं सदी में तत्कालीन सेन वंशज के राजा श्याम सेन द्वारा किया गया था. कहा जाता है कि उनकी पत्नी नित्य अपने रथ में बैठकर राधा-कृष्ण की पूजा करने यहां आया करती थी.

मान्यता के अनुसार तत्कालीन राजा ने यहां पर अनेक औषधीय पौधों का पौधारोपण भी किया था. जिनमें से एक दुर्लभ "देवदारु" का वृक्ष आज भी यहां विद्यमान है. लोग आज भी यहां के जल को घर की शुद्धि में प्रयोग करते हैं. इसके अलावा इस तपोभूमि पर हर साल बड़े स्तर पर यज्ञोपवीत संस्कार आयोजित किया जाता है.

वीडियो रिपोर्ट

जंगम बाग में हर साल सुंदरनगर के पुराना बाजार के हंटेडी में मौजूद जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम 3 दिनों के लिए विश्राम करने आते हैं. जानकारी के अनुसार तत्कालीन सुकेत के राजा की सलामती और रोग मुक्ति के लिए रानी ने भगवान जगन्नाथ से मन्नत मांगी थी कि भगवान जगन्नाथ मंदिर से जंगम बाग तक भगवान की भव्य यात्रा के आयोजन के लिए किया जाएगा. जिस परंपरा का निर्वहन पिछले सैकड़ों वर्षों से होता आ रहा है.

जंगम बाग का एक और महत्व है कि प्राचीन समय में यहां पर गुरुकुल पद्धति के अनुसार चारों आश्रमों के क्रियाकलाप और वेदों आदि का अध्ययन करवाया जाता था. सुकेत के राजा लक्ष्मण सेन के कार्यकाल में विद्वानजनों प्रयास और प्रकांड विद्वानों के सहयोग से संस्कृत के वेद, पुराण, गीता और कर्मकांड अनेक पद्धतियों का अध्ययन करवाने के लिए करतारपुर को चुना.

आज इस स्थान को पुराना बाजार कहा जाता हैं. साल 1923 में इस गुरुकुल को राजकीय संस्कृत महाविद्यालय पुराना बाजार में परिवर्तित किया गया. जहां पर वर्तमान में सैकड़ों शिक्षार्थी संस्कृत शिक्षा को ग्रहण कर रहे हैं.

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