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करसोग में बाड़ादेव कनेरी के नए देवरथ की हुई प्राण प्रतिष्ठा, हजारों श्रद्धालुओं ने लिया आशीर्वाद

मंडी जिले के करसोग में प्रसिद्ध बाड़ादेव मंदिर है. जहां बाड़ादेव के नए देवरथ की प्राण प्रतिष्ठा की गई. इस मौके पर प्रदेशभर से श्रद्धालु करसोग पहुंचे. देवरथ की प्राण प्रतिष्ठा मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन के साथ की गई.

badadev Temple In Karsog Himachal
बाड़ादेव के नए देवरथ की हुई प्राण प्रतिष्ठा

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Published : May 28, 2023, 4:06 PM IST

करसोग: प्रसिद्ध बाड़ादेव के नए देवरथ की प्राण प्रतिष्ठा की गई है. सदियों पुराने देवरथ के नव निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा के मौके पर कनेरी गांव में देव वाद्यों, मंत्रोच्चारण, भजन-कीर्तन से पूरी शिकारी देवी-कमरुनाग पर्वत श्रृंखला गूंज उठी. दो दिनों के आयोजन के दौरान कनेरी में खूब रौनक रही. श्रद्धालुओं ने नए देवरथ की हर्षोल्लास के साथ पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया.

'पुत्र रत्न की होती है प्राप्ति':बाड़ा देव की वजह से कनेरी गांव की भी महिमा है. बाड़ादेव के साथ दंड नायक के पद पर नियुक्त देव भारथी खमीर सहयोगी देवगण के रूप में प्रसिद्ध हैं. बाड़ादेव को देव कनेरी, देओ छण्डयारा, टौणा देओ, वीरसेन, सहदेव सहित अनेक नामों से जाना जाता है. बाड़ादेव प्रसिद्ध अत्यंत तेजस्वी, न्यायप्रिय, निपुण, मुक्ति का साक्षात्कार कराने वाले हैं. बाड़ादेव की सच्चे मन से पूजा-अर्चना करने और मन्नत मांगने पर लोगों को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. ऐसे में यहां जिला मंडी सहित बिलासपुर, सोलन और शिमला से श्रद्धालु आते हैं. यही नहीं मान्यता है कि बाड़ादेव दुष्टों को कई तरह के शारीरिक व मानसिक कष्ट पहुंचा कर क्षेत्र से बाहर करते हैं. इसी तरह से भक्तों को बाहर से वापस लाकर अपने अधिकार क्षेत्र में बसा देते हैं.

'बाड़ादेव के नाम से पूजे जाते हैं सुकेत रियासत के राजा':करसोग के कनेरी में बाड़ादेव न्याय प्रिय प्रजा पालक सुकेत रियासत के संस्थापक राजा वीरसेन को बाड़ादेव के नाम से पूजा जाता है. देवता की शक्ति पर विश्वास रखने वाले लोगों की जीवन में आने वाली बड़ी बाधा भी दूर होती है. बाड़ादेव की कृपा से कनेरी माहौग-कलाशन पंचायत के निवासी और प्रदेश भर के भक्त सदा सुख प्राप्त कर निर्भय रहते हैं. झाड़ा उत्सव में चावल के दानों की सम-विषम संख्या के आधार पर श्रद्धालुओं देव गूरों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. जिसके बाद देव रथयात्रा के साथ सभी जातरु पजैरठी स्थित मंदिर वापस लौट जाते हैं.
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