मन की मुरादों को पूरा करते हैं देवता माहूंनाग, पिंडी के सामने फुस हो गए थे विस्फोट! - देवता माहूंनाग
मंडी नगर को लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यहां अनेक मंदिर है. श्री देव माहूंनाग टारना मंदिर भी इसी धार्मिक नगरी में स्थित है. कहा जाता है कि ये मंदिर के 1950 में बना था और रथ 1962 में बनाया गया है. जो लगातार शिवरात्रि मेले में शिरकत करता है.
मंडी: चारों ओर से पर्वतों से घिरा हिमाचल का खूबसूरत नगर मंडी अपनी संस्कृति, सभ्यता और इतिहास को अपने पहलू में संजोए हुए है. ये नगर ब्यास गंगा के तट पर बसा धार्मिक आस्थाओं का केंद्र है.
मंडी नगर को लोग छोटी काशी के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यहां अनेक मंदिर है. श्री देव माहूंनाग टारना मंदिर भी इसी धार्मिक नगरी में स्थित है. कहा जाता है कि ये मंदिर के 1950 में बना था और रथ 1962 में बनाया गया है. जो लगातार शिवरात्रि मेले में शिरकत करता है. मंदिर को पहले बच्चों का माहूंनाग भी कहा जाता था. भ्रादों की पत्थर चरौथ को माहूंनाग का जागरा मनाया जाता है.
देव विधि के तहत बच्चे मोहन लाल (वर्तमान गुर के पिता ) को देव माहूंनाग की पूजा अर्चना का अधिकार सौंपा गया. सात साल की उम्र में ही पूजा अर्चना उन्होंने शुरू की. इसी बालक के माध्यम से पता चला कि करीब सात साल बाद मंदिर में पिंडी स्थपित होगी. सात साल बाद पंडोह रोड में बिंद्रावणी नामक स्थान वाले जंगल से इस पिंडी को निकाला गया.
वहीं, पंजेहटी गांव में करयाला मेला देवता के सम्मान में होता है. बताया जाता है कि माहूंनाग देवता श्रद्धालुओं की मन मुरादों की पूर्ति करता है. सांप, बिच्छू व अन्य जीव जंतुओं का विष से भक्तों का ठीक करते हैं.