लाहौल-स्पीतिः देश के कई हिस्सों से कन्या भ्रूण हत्या से लेकर, दहेज हत्या, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के कई मामले सामने आते हैं. दरअसल कई लोग आज भी बेटियों को बोझ मानते हैं. ऐसे लोगों को हिमाचल के लाहौल स्पीति जिले का एक गांव आइना दिखा रहा है.
गांव में बेटी के जन्म पर होता है जश्न
बेटे के जन्म पर थाली बजाने, कुंआ पूजना या पार्टी देना तो आपने सुना होगा. लेकिन लाहौल स्पीति जिले के प्यूकर गांव में बेटी के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है. प्यूकर गांव में बेटी पैदा होने पर गोची उत्सव मनाया जाता है. जिसमें आस-पास के लोगों को बकायदा निमंत्रण दिया जाता है. शादी की ही तरह नाच-गाना होता है. ढोल की थाप पर लोग नाचते हैं और जश्न मनाते हैं. मेहमानों को स्थानीय व्यंजन परोसे जाते हैं. कार्यक्रम में पहुंचे मेहमान बेटी के पैदा होने पर माता-पिता को बधाई देते हैं. कुल मिलाकर बेटी के पैदा होने पर शादी समारोह की तरह उत्सव मनाया जाता है.
क्या होता है गोची उत्सव
लाहौल स्पीति में बेटों के पैदा होने पर गोची उत्सव मनाने की परंपरा है. बेटे के जन्म पर जश्न मनाया जाता है. कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान और कार्यक्रम होते हैं. लेकिन प्यूकर गांव में गोची उत्सव बेटी के जन्म पर भी मनाया जाता है. प्यूकर गांव के लोग बेटा और बेटी में भेदभाव नहीं करते हैं.
बर्फ की चादर के बीच मना जश्न
लाहौल घाटी इन दिनों बर्फ की सफेद चादर में लिपटी हुई है. प्यूकर गांव में बर्फ की मोटी चादर के बीच ही बेटी के पैदा होने का जश्न मनाया गया. पूरा गांव इस जश्न में शामिल हुआ. झूमते-गाते लोगों ने लोक धुनों पर लोकनृत्य किया और मेहमानों को स्थानीय व्यंजन परोसे गए.
लाहौल घाटी में बेटों के जन्म के बाद गोची उत्सव के दौरान जो पूजा-पाठ, अनुष्ठान और दूसरी परंपराएं निभाई जाती हैं. प्यूकर गांव में वहीं विधि विधान बेटियों के जन्म पर भी किया जाता है. देवी-देवताओं की पूजा करके बच्चे के खुशहाल भविष्य की कामना की जाती है.
स्थानीय प्रशासन भी पहुंचा प्यूकर गांव
इस साल 4 से 8 फरवरी के दौरान गोची उत्सव मनाया गया. प्यूकर गांव में इस साल दो बेटियों और एक बेटे का जन्म हुआ है. इस बार प्यूकर गांव में मनाए गए जश्न में लाहौल स्पीति के जिला उपायुक्त पंकज राज भी पहुंचे. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हिस्सा बनकर जिला उपायुक्त भी खुद को खुशनसीब मानते हैं.
प्यूकर गांव को अपनी परंपरा पर गर्व
बेटियों को लक्ष्मी का रूप कहते हैं और प्यूकर गांव बेटियों के सम्मान की सीख देता है. इस गांव में बेटियों के जन्म का जश्न बेमिसाल है और कई लोगों के लिए मिसाल है. इस गांव की ये परंपरा उन लोगों के लिए आइना है जो बेटियों को बोझ मानते हैं और उनके साथ भेदभाव करते हैं. ये परंपरा कितनी पुरानी है ये तो कोई नहीं जानता लेकिन बेटियों के पैदा होने पर जश्न मनाने की परंपरा पर प्यूकर के हर बाशिदें को गर्व है.
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