कुल्लू: जिले में इस साल काफी कम बारिश हुई है. बर्फबारी भी लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाई. कम बारिश और बर्फबारी से जहां ग्लेशियर सूखे पड़े हैं, वहीं पेयजल को लेकर भी लोगों की चिंता बढ़ गई है. इसके चलते गर्मियों में सूखे की आशंका भी किसानों और बागवानों को सता रही है. लाहौल स्पीति में भी इस साल उम्मीद से बहुत कम बर्फबारी हुई है.
2020 में 280 सेंटीमीटर बर्फबारी, 2021 में 96 सेंटीमीटर
साल 2020 में जहां लाहौल-स्पीति में 280 सेंटीमीटर बर्फबारी हुई है तो इस साल यह आंकड़ा 96 सेंटीमीटर पर ही सिमट गया है. लाहौल-स्पीति के पहाड़ों में करीब 250 से अधिक ग्लेशियर हैं. ये ग्लेशियर गर्मियों में पिघलकर सतलुज और चिनाब नदी को संजीवनी देते हैं. इस बार कम बर्फबारी होने से इसका सीधा असर इन दो प्रमुख नदियों के जलप्रवाह पर पड़ेगा. सीबी रेंज, पीरपंजाल और वृहद हिमालय के सैकड़ों साल पुराने ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार भी तेज हो सकती है.
कम बर्फबारी के कारण घाटी के तापमान में असामान्य वृद्धि
बुजुर्ग बताते हैं कि लाहौल-स्पीति में पहली बार दशकों बाद इतनी कम बर्फबारी हुई है. कम बर्फबारी के कारण घाटी के तापमान में भी असामान्य वृद्धि दर्ज हुई है. मौसम विज्ञान केंद्र के अनुसार इस साल जनवरी में 88 सेंटीमीटर, फरवरी में महज 6 सेंटीमीटर और मार्च में अभी तक केवल 3 सेंटीमीटर बर्फ रिकॉर्ड की गई है. कम बर्फबारी होने से लाहौल-स्पीति के करीब 70 फीसदी हिस्से से मार्च में ही बर्फ की चादर गायब हो चुकी है.
कई सालों बाद हिमाचल में सबसे कम बारिश और बर्फबारी
85 साल से अधिक के बुजुर्ग फुंचोग, मानदास, जोगचंद और दोरजे ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन काल में इस तरह का मौसम कभी नहीं देखा. केलांग समेत पूरी पट्टन घाटी में बर्फ पिघल गई है. आने वाले दिनों में घाटी के कई हिस्सों में पानी की भारी किल्लत रहेगी. मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के निरीक्षक हरी दत्त ने कहा कि कई सालों बाद हिमाचल में सबसे कम बारिश और बर्फबारी रिकॉर्ड हुई है.
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