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Raksha Bandhan 2023 : रक्षाबंधन की तारीख पर क्यों है कन्फ्यूजन ? जानें कब है राखी ? - भद्रा और रक्षाबंधन

Raksha Bandhan 2023 मनाने को लेकर इस बार कन्फ्यूजन बना हुआ है. 30 अगस्त को श्रावण मास की पूर्णिमा है और इसी दिन रक्षाबंधन मनाया जाता है लेकिन इस साल राखी का त्योहार 30 और 31 अगस्त के कन्फ्यूजन के बीच फंसा है. आखिर कब है रक्षाबंधन और इस बार क्यों हुआ है ये कन्फ्यूजन ? आपकी हर कन्फ्यूजन को पूरा करेंगे, पढ़े ये आर्टिकल (Rakhi Kab Hai) (Raksha bandhan 2023 date)

Raksha bandhan 2023 date
Raksha bandhan 2023 date

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Aug 28, 2023, 2:13 PM IST

कुल्लू : रक्षाबंधन कब है ? 30 अगस्त या 31 अगस्त ? ये सवाल हर कोई पूछ रहा है. इस बार रक्षाबंधन के त्योहार को लेकर कन्फ्यूजन क्यों है ? इस वजह के बार में आपको डिटेल से बताएंगे लेकिन पहले जानिये कि बहनें भाइयों की कलाई पर राखी कब बांध सकती हैं ?

रक्षाबंधन कब है : भाई-बहन के प्रतीक का त्योहार रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो कि बुधवार 30 अगस्त को है लेकिन इस दिन लगभग पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा. इसलिये रक्षाबंधन की तिथि को लेकर कन्फ्यूजन हुआ है. मान्यता है कि भद्रा काल मे शुभ कार्य नहीं करने चाहिए.

श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है रक्षाबंधन

कुल्लू के आचार्य दीप कुमार के मुताबिक पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10.58 से 31 अगस्त सुबह 7:05 बजे तक होगी. लेकिन पूर्णिमा तिथि लगने से पहले पहले ही 30 अगस्त को सुबह 10.19 बजे से भद्रा लग जाएगी. जो रात 9.01 बजे तक चलेगी. माना जाता है कि भद्राकाल में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. इसलिये भद्राकाल समाप्त होने के बाद राखी बांध सकते हैं. कई लोगों की मान्यता है कि रात्रि के समय राखी नहीं बांधते हैं और बहनें दूर दराज के इलाकों से सफर करके अपने भाइयों के पास पहुंचती हैं. ऐसे में आचार्य दीप कुमार के मुताबिक 31 अगस्त को सुबह 7 बजकर 5 मिनट तक पूर्णिमा तक और उसके बाद भी पूरे दिन 31 अगस्त को बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांध सकती हैं.

बुधवार 30 अगस्त को है श्रावण मास की पूर्णिमा

भद्रा की वजह से हुई है कन्फ्यूजन : रक्षाबंधन की तारीख को लेकर सारा कन्फ्यूजन भद्रा की वजह से हुआ है. आचार्य दीप कुमार बताते हैं कि सनातन धर्म में किसी भी मांगलिक कार्य में मुहूर्त व तिथि का जहां विशेष ध्यान रखा जाता है. इसके अलावा उस दिन विशेष पर भद्रा योग का भी विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है क्योंकि भद्रा काल में किसी भी कार्य की शुरुआत करना अशुभ कहा गया है और भद्रा काल में कोई भी शुभ या धार्मिक कार्य नहीं जाता है.

इस बार रक्षाबंधन पर है भद्रा का साया

कौन है भद्रा और इससे जुड़ी मान्यता : भद्रा को भगवान सूर्य देव की बेटी और शनिदेव की बहन कहा गया है. कहते हैं कि भद्रा का स्वभाव भी अपने भाई शनि की तरह है, जिसे नियंत्रित करने के लिए ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग के विशेष अंग विष्टि करण में जगह दी. मान्यता है कि भद्रा का वास तीनों लोकों स्वर्गलोक, पृथ्वीलोक और पाताललोक में होता है. आचार्य दीप कुमार के मुताबिक जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ या मीन राशि में होता है तब भद्रा का वास पृथ्वी पर होता है. चंद्रमा जब मेष, वृष, मिथुन या वृश्चिक में रहता है तब भद्रा का वास स्वर्ग लोक में होता है और जब चंद्रमा तुला, धनु, कन्या या मकर राशि में स्थित होता है तो भद्रा का वास पाताल लोक में होता है. मान्यता है कि भद्रा जिस लोक में होती है उसी लोक में उसका प्रभाव होता है.

भद्रा काल के बाद बहनें बांध सकेंगी भाइयों को राखी

भद्रा और रक्षाबंधन : 30 अगस्त को श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन सुबह 10.19 बजे चंद्रमा कुंभ राशि में प्रवेश करेगा और भद्राकाल रात 9.01 बजे तक रहेगा. इस समय भद्रा का वास पृथ्वीलोक पर होगा. इसलिये इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाएंगे. भद्राकाल में शुभ कार्य, धार्मिक या यात्रा आदि वर्जित होती है लेकिन भद्राकाल में तंत्र-मंत्र से जुड़े कार्य, अदालत या सियासी कार्य मनवांछित फल देने वाले माने गए हैं.

भद्राकाल के दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं

भद्रा से जुड़ी कथा- धार्मिक मान्यता के अनुसार दैत्यों को मारने के लिए भद्रा का जन्म हुआ था. जिसका गर्दभ (गधा) का मुख, लंबी पूंछ और तीन पैर थे. पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य और पत्नी छाया की बेटी है. भद्रा श्याम वर्ण, लंबे केश, बड़े दांत वाली तथा भयंकर रूप वाली कन्या है. जन्म लेते ही भद्रा ने यज्ञ, शुभ व मंगल कार्यों में बाधा पहुंचाई और खूब उपद्रव मचाया. बेटी के इस स्वभाव से सूर्यदेव चिंतित हो गए और इसके निवारण के लिए ब्रह्मा के पास पहुंचे. ब्रह्मा जी ने तब विष्टि से कहा कि -'भद्रे, बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो. ब्रह्मा जी ने भद्रा से कहा कि जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे. तुम उन्ही में विघ्न डालो. जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना. तब से भद्रा तीनों लोकों में अपने समय पर विचरण करती है. तबसे भद्रा अपने समय में ही देव, दानव और मानव को कष्ट देती हुई घूमने लगी.

31 अगस्त को भी बांध सकेंगे राखी

आचार्य दीप कुमार का कहना है कि भद्रा का दूसरा नाम विष्टि करण है. कृष्ण पक्ष की तृतीया, दशमी और शुक्ल पक्ष की चर्तुथी, एकादशी के उत्तरार्ध में एवं कृष्ण पक्ष की सप्तमी-चतुर्दशी, शुक्ल पक्ष की अष्टमी-पूर्णमासी के पूर्वार्ध में भद्रा रहती है. शास्त्रों के अनुसार धरती लोक की भद्रा सबसे अधिक अशुभ मानी जाती है. तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा दिन की भद्रा कहलाती है और तिथि के उत्तरार्ध की भद्रा को रात की भद्रा कहते हैं. अगर दिन की भद्रा रात के समय और रात्रि की भद्रा दिन के समय आ जाए तो इसे शुभ माना जाता है.

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