हिमाचल प्रदेश

himachal pradesh

हर हाल में निभाई जाती है कुल्लू दशहरा की अटूट परंपराएं, देवी-देवताओं के दर्शन के लिए पहुंचते हैं लाखों श्रद्धालू

By

Published : Sep 21, 2019, 3:33 PM IST

विश्वविख्यात कुल्लू दशहरा हिमाचल की समृद्ध और पुरानी संस्कृति का साक्ष्य है. सात दिन तक चलने वाला कुल्लू दशहरा अपनी अनोखी परंपराओं के लिए मशहूर है. पूरे देश में जब दशहरे की समाप्ति होती है, उसी दिन से कुल्लू का दशहरा शुरू होता है.

हर हाल में निभाई जाती है कुल्लू दशहरा की अटूट परंपराएं.

कुल्लू: हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं राज्य भी कहा जाता है. यहां के गांवों के अलग-अलग देवता हैं. दशहरे से करीब एक महीने पहले से देवताओं को निमंत्रण भेजा जाता है. देवता आने की मंजूरी देते हैं और इसके बाद उन्हें पालकी से कुल्लू के ढालपुर मैदान में लाया जाता है.

कुल्लू दशहरे के लिए 369 साल पहले राजा जगत सिंह ने देवताओं को बुलाने के लिए न्यौता देने की परंपरा शुरू की थी और यही परंपरा आज भी चली आ रही है. बिना न्यौते के देवता अपने मूल स्थान से कदम नहीं उठाते. वर्ष 1650 में तत्कालीन राजा जगत सिंह की ओर शुरू किया गया कुल्लू दशहरा कई परंपराओं और मान्यताओं को संजोए हुए हैं. 369 सालों से राजवंश और अब प्रशासन हर बार 300 के करीब घाटी के देवी-देवताओं को दशहरे का न्यौता देता आ रहा है. इस बार रिकॉर्ड 331 निमंत्रण दिए गए. इसमें 26 नए देवता भी शामिल हैं. इस न्यौते के बिना देवता अपने मूल स्थान से कदम तक नहीं उठाते.

भले ही कुल्लू के राजा जगत सिंह ने पंडित दुर्गादत्त की ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए अयोध्या से लाई भगवान रघुनाथ की मूर्तियों की पूजा के लिए दशहरा शुरू किया, लेकिन आज यह उत्सव देव-मानस मिलन के महाकुंभ में परिवर्तित हो गया है.

दशहरे से दो सप्ताह पहले खराहल, ऊझी, बंजार, सैंज घाटी के देवता प्रस्थान करना शुरू कर देते हैं. कई देवता अपने देवलुओं-कारिंदों के साथ 200 किलोमीटर तक पैदल यात्रा के दौरान उफनती नदियों, जंगलों, पहाड़ों से होते हुए कुल्लू के ढालपुर पहुंचते हैं. देवता सदियों से पुराने अपने रास्तों से आते हैं. उनके विश्राम करने, रुकने, पानी पीने के लिए स्थान तय किये गए हैं. कड़ी धूप हो या तेज बारिश, किसी भी मौसम में देवताओं का आगमन नहीं रुकता.

देवताओं के कारकून व देवलु दशहरे के सात दिनों तक अस्थायी शिविरों में रहते हैं. वहीं, कारकून कड़े देव नियमों से बंधे होते हैं. देवता के कारकून न बाहर जा सकते और न दूसरों का बना खाना खा सकते हैं. सात दिनों तक एक जगह पर 300 से ज्यादा देवी-देवताओं के दर्शन के लिए करीब 10 लाख से ज्यादा लोग, देशी-विदेशी पर्यटक, शोधार्थी हाजिरी भरते हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details