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अटल टनल बनने से लाहौल के लोगों को सुविधा, स्पीति के लिए 'दिल्ली अभी भी दूर' - इतिहासकार छेरिंग दोरजे

अटन टनल के बनने से लाहौल के लोगों को तो सुविधा मिल गई है, लेकिन स्पीति के लोगों का संपर्क अभी भी सर्दियों के मौसम में शेष दुनिया से कटा रहेगा. लाहौल और स्पीति के बीच एक कुंजम जोत पड़ती है. ऐसे में कुंजम जोत में भी एक टनल बनाने की जरूरत है तब जाकर स्पीति के लोग सर्दियों के मौसम में शेष दुनिया से जुड़ पाएंगे.

फाइल फोटो
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Published : Oct 5, 2020, 2:41 PM IST

Updated : Oct 6, 2020, 7:01 AM IST

कुल्लू: अटल टनल रोहतांग के उद्घाटन के बाद अब इसे पूरी तरह से यातायात के लिए खोल दिया गया है. टनल के बनने के पीछे लंबी कहानी है. साल 1998 में लाहौल-स्पीति के तीन लोगों का एक दल उस समय के प्रधानमंत्री व भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी से टनल को बनाने के लिए दिल्ली में मिला था. इन तीन लोगों में अर्जुन गोपाल, छेरिंग दोरजे और अभय चंद राणा शामिल थे.

लाहौल-स्पीति क्षेत्रफल की दृष्टि से हिमाचल का सबसे बड़ा जिला है. यह जिला साल के छह महीने पूरी तरह से बर्फ से ढका रहता है. अटल टनल के न बनने से पहले यहां के लोग दुर्गम जीवन जीने को मजबूर थे. छह महीने ये ट्राइबल जिला शेष दुनिया से पूरी तरह से कट जाता था. इस दौरान यहां सिर्फ बर्फ से ढके पहाड़ नजर आते थे. आपातकाल के समय में यहां के लोगों को हेलिकॉप्टर के जरिये कुल्लू जिला मुख्यालय लाया जाता था. हेलिकॉप्टर की सुविधा केवल संपन्न लोगों को ही मिल पाती थी. ऐसे में यहां के लोग टनल की लंबे समय से मांग कर रहे थे.

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कारगिल युद्ध के समय पूर्व प्रधानमंत्री को समझ आया टनल का महत्व

करीब छह बार ये दल टनल को बनाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला था. साल 1999 में कारगिल युद्व के समय जब पाकिस्तान ने हिंदुस्तान की जमीन पर कब्जा कर लिया था उस समय अटल बिहारी वाजपेयी को रोहतांग से लेह पहुंचने के लिए टनल की जरूरत महसूस हुई. टनल निर्माण से जहां लेह पहुंचने के लिए कम समय लगना था. वहीं, युद्व के समय इस रास्ते से आर्मी के लिए जरूरी सामान पहुंचाना आसान था.

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का लाहौल दौरा

अटन टनल की मांग के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौल का दौरा किया. अपने दौरे के दौरान उन्होंने वहां के लोगों की समस्याओं को सुना. वहीं, टनल के समारीक दृष्टि के महत्व को समझते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने टनल निर्माण को बनाने की घोषणा की. इस तरह से साल 2010 में टनल निर्माण का कार्य शुरू हुआ.

स्पीति के लोगों की मुश्किलें अब भी नहीं हुई कम

अटन टनल के बनने से लाहौल के लोगों को तो सुविधा मिल गई है, लेकिन स्पीति के लोगों का संपर्क अभी भी सर्दियों के मौसम में शेष दुनिया से कटा रहेगा. लाहौल और स्पीति के बीच एक कुंजम जोत पड़ती है. ऐसे में कुंजम जोत में भी एक टनल बनाने की जरूरत है तब जाकर स्पीति के लोग सर्दियों के मौसम में शेष दुनिया से जुड़ पाएंगे.

रोहतांग टनल बनने के बाद भी लद्दाख पहुंचना नहीं आसान

इतिहासकार छेरिंग दोरजे ने बताया कि रोहतांग टनल के बनने के बाद लद्दाख पहुंचने के लिए मात्र 45 से 50 किलोमीटर दूरी कम हुई है. अब भी रास्ते में तीन जोत पड़ते हैं, जिनमें बारालाचा, लचुनोला और तांगलाक प्रमुख हैं. जब तक इन जोत पर टनल नहीं बनेगी तब तक सर्दियों में लद्दाख पहुंचना आसान नहीं होगा.

रोहतांग टनल के बनने से लाहौल की संस्कृति को खतरा

इतिहासकार छेरिंग दोरजे ने ईटीवी भारत से खासबातचीत में बताया कि टनल के बनने से जहां लाहौल के लोगों का जीवन सुगम बन जाएगा. वहीं, बाहरी दुनिया से संपर्क जुड़ने से आने वाले समय में लाहौल की संस्कृति को खतरा हो सकता है.

Last Updated : Oct 6, 2020, 7:01 AM IST

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