कुल्लू: अपनी समृद्ध संस्कृति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध देवभूमि हिमाचल पुरातन इतिहास के कई पन्नों को समेटे हुए हैं. यहां कई पीढ़ियों पुरानी परंपराएं आज भी निभाई जा रही हैं. यही कारण है कि यहां प्राचीन संस्कृति आज भी जिंदा है. इसी का एक जीता जागता उदाहरण फागली उत्सव है.
- क्या है फागली उत्सव:
- फागली उत्सव में अश्लील जुमलों के साथ होता है मुखौटा नृत्य
- देवघर में प्रज्वलित की जाती है 100 फीट की विशाल मशाल
- जलती मशाल के साथ नाचते-कूदते हैं मुखौटाधारी
- स्थानीय बोली में मुखौटाधारी को कहा जाता है मढयाले
- बर्फ से जाम पानी के कुंड में बैठते हैं देवगुर
- दैत्य रूपी मुखौटों की लोग करते हैं पूजा
- कांढी गांव में आयोजित होता है दैत्य संसद
- अंत में होता है देव-दैत्यों का युद्ध
- दैत्यों को हराकर स्थापित किया जाता है देवताओं का सम्राज्य
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यहां अश्लील गालियों से भगाए जाते हैं भूत प्रेत
कुल्लू की बंजार घाटी में फागली उत्सव सर्दियों में शुरू होता है. उत्सव के दौरान गांव में अश्लील जुमलों के साथ मुखौटा नृत्य किया जाता है. इस दौरान बंजार घाटी के गांव पढ़ारनी में 100 फीट की विशाल मशाल देवघर में प्रज्वलित की जाती है. इस मशाल को उठाकर ग्रामीण दूसरी रियासत पलदी घाटी के लिए कूच करते हैं. सुबह होने तक सैंकड़ों लोग व दर्जनों मुखौटाधारी जलती मशाल के साथ नाचते-कूदते कांढ़ी चौका स्थान पर पहुंचते हैं. कांढ़ी चौका पहुंचने पर सैकड़ों मुखौटाधारी जिन्हें स्थानीय बोली में मढयाले कहा जाता है उनका सामूहिक नृत्य होता है.
इस उत्सव में खास बात ये देखने को मिलती है कि कांढ़ी चौका के मैदान में विराजमान देवता करथानाग के मंदिर में देवगुर बर्फ से जाम पानी के कुंड में सुबह से शाम तक बैठकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं और सालभर की भविष्यवाणी करते हैं.