कुल्लू:हिमाचल प्रदेश में पुराने दौर में जहां हर ग्रामीण इलाकों में परंपरागत खेती की जाती थी और खेती के माध्यम से किसान मोटे अनाज को तैयार करते थे. वहीं, बदलती भौगोलिक परिस्थितियों के चलते परंपरागत खेती से किसान दूर होने लगे और मोटे अनाज की खेती भी बंद हो गई. लेकिन अब मोटे अनाज के लिए केंद्र सरकार के द्वारा बजट में खास प्रावधान किया गया है और श्री अन्न योजना भी इसके लिए शुरू की गई है. ताकि देश भर में एक बार फिर किसान परंपरागत खेती कर अपने खेतों में मोटे अनाज का उत्पादन करें.
हिमाचल में भी अपने पौष्टिक तत्वों और प्रचुर कैल्शियम प्रदान करने वाले परंपरागत काऊणी, चीणी, काठू और कोदरा की खेती यहां लगभग विलुप्त हो गई है. प्रदेश के कुछ ही कोने में अब इसकी खेती कम मात्रा में की जा रही है. आलम यह है कि अन्य नकदी फसलों को तरजीह देते हुए कई योजनाएं शुरू कर भारी अनुदान भी प्रदान किया जा रहा है. अब श्री अन्न योजना से किसान फिर परंपरागत खेती की ओर मुड़ सकेंगे.
कई बीमारियों के लिए फायदेमंद मोटा अनाज: विशेषज्ञों की मानें तो मोटे अनाजों के सेवन से कई बीमारियां दूर होती हैं. बल्ड प्रेशर, मधुमेह रोग, दिल के रोग सहित कई हड्डियों के रोग के लिए तो यह परंपरागत अनाज औषधी रूपी माने जाते हैं. प्रदेश के ग्रामीण इलाको में चार दशक पहले इन अनाजों की खेती जमकर की जाती थी. जबकि वर्तमान में इसकी खेती सिमट गई है. कुछ इलाको में देव कार्यों के लिए ही अब इसकी खेती की जा रही है. वहीं, कृषि विभाग की मानें तो आजकल लोगों का रुझान नकदी फसलों की ओर बढ़ा है. नगदी फसलों से किसान-बागबानों को काफी मुनाफा मिल रहा है. इस वजह से पुरानी खेती लुप्त होने की कगार पर है.
हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती के माध्यम से अब हजारों किसान परंपरागत खेती की ओर अपना रुझान दिखा रहे हैं, तो वहीं कृषि विभाग भी किसानों को मोटे अनाज के बीज को उपलब्ध करवा रहा है. इन बीजों के माध्यम से किसान फिर से अपने खेतों में काऊणी, चीणी, कोदरा और काठू की फसल उगा रहे हैं. लेकिन अभी भी इस बारे जागरूकता व कृषि के बारे में किसानों को जागरूक करने की आवश्यकता है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार किसानों की डिमांड पर शिमला से उपरोक्त अनाज को मंगवाया जाता है. काफी समय से इन अनाजों की पैदावार बिल्कुल कम हो गई है और यह अनाज बहुत गुणकारी है.