पार्वती परियोजना: मजदूरों की छंटनी के विरोध में उतरे पंचायत प्रतिनिधि, DC को सौंपा मांग पत्र
पार्वती परियोजना चरण-3 में आज तक परियोजना प्रबंधन ने सभी विस्थापितों को स्थाई रोजगार नहीं दिया और जिन लोगों को अस्थाई तौर पर लगाया गया है. उनकी भी छंटनी की जा रही है. इसे लेकर अब पंचायत प्रतिनिधि भी उग्र हो गए हैं.
कुल्लू: पार्वती परियोजना चरण-3 में मजदूरों की छंटनी को लेकर अब पंचायत प्रतिनिधि भी उग्र हो गए हैं. ग्राम पंचायत लारजी व तलाड़ा के पंचायत प्रतिनिधियों ने परियोजना प्रबंधन को दो टूक शब्दों में कह दिया है कि यदि विस्थापित एवं प्रभावित मजदूरों की छंटनी की गई तो वे आंदोलन को उग्र करेंगे. लारजी पंचायत की प्रधान कांता देवी व तलाड़ा पंचायत के उप प्रधान बाल कृष्ण शर्मा और बार्ड सदस्यों ने डीसी कुल्लू को इस मामले को लेकर ज्ञापन भी सौंपा. उन्होंने कहा कि यदि पार्वती परियोजना चरण.3 ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट के चार मजदूरों को हटाया गया तो परियोजना स्थल का घेराव होगा और वहीं पर अनशन भी होगा.
परियोजना प्रबंधन ने विस्थापित मजदूरों को 31 मार्च तक निकालने के फरमान जारी कर दिए हैं जो विस्थापितों के साथ अन्याय है. पार्वती जल विधुत परियोजना में यदि प्रभावितों एवं विस्थापित परिवारों से रोजगार पर लगे लोगों की छंटनी की गई तो वह सहन नहीं होगी. स्थानीय ग्रामीणों के अलावा लारजी पंचायत की प्रधान कांता देवी व उप प्रधान ग्राम पंचायत तलाड़ा बाल कृष्ण शर्मा ने बताया कि पार्वती परियोजना-3 द्वारा उन लोगों की छंटनी की जा रही है जो विस्थापित व प्रभावित कोटे से लगाए गए हैं. इस तरह के फरमान किसी भी सूरत में सहन नहीं होंगे. यदि प्रभावित व विस्थापित लोगों की छंटनी की गई तो परियोजना के खिलाफ धरने प्रदर्शन किए जाएंगे. यही नहीं प्रभावित व विस्थापित परिवार अनशन पर बैठेंगे और जरूरत पड़ी तो परियोजना का कार्य बंद कर दिया जाएगा.
हैरानी इस बात की है कि परियोजना निर्माण के लिए यहां के लोगों ने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया है और घर से बेघर हुए हैं और तब भी आज रोजगार के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं. आज तक परियोजना प्रबंधन ने सभी विस्थापितों को स्थाई रोजगार नहीं दिया है और जिन लोगों को अस्थाई तौर पर लगाया गया है. उनकी भी छंटनी की जा रही है. पार्वती परियोजना चरण-3 ने अभी तक मात्र 198 हिमाचलियों को अस्थाई रोजगार, 16 लोगों को स्थाई रोजगार, जबकि विस्थापित सैकड़ों में है. विस्थापित परिवारों के साथ एनएचपीसी भेदभाव कर रही है जबकि विस्थापितों की जगह कई बाहरी लोगों को भी लगाया गया है.