कुल्लू: कोविड-19 महामारी के कारण लगे कर्फ्यू और लॉकडाउन के कारण जहां पिछले कुछ महीनों से सभी घरों में कैद होने पर मजबूर हुए, वहीं अब अनलॉक-1 में कुछ रियायतें मिलने की वजह से कुछ हद तक उन सबके चेहरों पर खुशी है, लेकिन ऐसे मुश्किल हालात में भी कुछ लोग घर पर रहकर ही इस समय का सही से इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, हिमाचल के कुल्लू जिले की रहने वाली बारहवीं कक्षा की छात्रा ओजस्विनी सचदेवा ने इस मुश्किल समय का सही इस्तेमाल कर कुछ अलग करने की ठानी.
ओजस्विनी सचदेवा ने अपने परदादा नानक और दादा युधिष्ठिर के जीवनकाल पर आधारित एक किताब 'उद्गम' लिखकर बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है. इस किताब में ओजस्विनी ने भारत-पाक बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए उनके दादा के रिफ्यूजी होने के दर्द को बयान किया है. ओजस्विनी के माता-पिता बचपन से ही उसे विभाजन और दादा-परदादा के दर्द की दास्तां सुनाया करते थे और ऐसे मुश्किल वक्त में ओजस्विनी ने अपनी किताब में उस दर्द को पिरोया है. उनके माता-पिता उन्हें हमेशा उनके दादा और परदादा के बारे में बताते रहते थे कि किन परिस्थितियों में बंटवारे के बाद वो भारत आए और यहां पर उन्हें किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
ओजस्विनी ने बताया कि रिफ्यूजी कहलाना इतना आसान नहीं है और कई बार आसपास के लोगों से भी काफी को सुनना पड़ता है. कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल मोहल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली ओजस्विनी बताती हैं कि उसे बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक है. जहां कर्फ्यू में उसे काफी कविताएं लिखीं. उनकी प्रधानाचार्य सुधा महाजन ने उन्हें किताब लिखने के लिए प्रेरित किया. उसके बाद उसने 25 मार्च से किताब लिखना शुरू की. जब छोटी थी तो उनके दादा की मौत हो गई थी, लेकिन रिफ्यूजी होने का दर्द उन्हें और उनके परिवार को पहले भी और आज भी झेलना पड़ता है.
किताब के प्रकाशन पर ओजस्विनी ने बताया कि अभी उनकी किताब अमेजन पर प्रकाशित हुई है और जल्द ही सभी को हार्ड कॉपी उपलब्ध करवाई जाएगी ताकि सभी विभाजन के दर्द को समझ सकें. वहीं, आगामी भविष्य में वह समाज सेवा करना चाहती हैं. इससे पहले भी वो एक कविता संकलन रह चुकी हैं जिसमें पांच कविताएं हैं. वह कविताओं के माध्यम से युवाओं को संस्कृति को बचाने के लिए प्रेरित करती रहती हैं. वहीं, ओजस्विनी के माता पिता का कहना है कि उन्हें गर्व है कि उनकी बेटी ने दादा के दर्द को शब्दों के माध्यम से पुस्तक में पिरोया है जो उनके लिए सबसे बड़ी श्रद्धांजलि है.
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