ढालपुर के क्षेत्रीय अस्पताल में उर्दू भाषा के जानकार हारून रिशिदी की तैनाती. ढालपुर/कुल्लू:जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर के क्षेत्रीय अस्पताल में अब जन्म, मृत्यु का पुराना रिकॉर्ड जांचने में लोगों को किसी प्रकार की परेशानी का कोई सामना नहीं करना होगा. क्योंकि अब यहां पर जिला परिषद अध्यक्ष पंकज परमार के द्वारा एक स्वयंसेवी की तैनाती की गई है जो उर्दू भाषा में लिखे गए रिकॉर्ड का अनुवाद हिंदी भाषा में करेगा. जिससे लोगों को अपने दस्तावेजों को सही करने में किसी प्रकार की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा. जिला परिषद अध्यक्ष पंकज परमार के द्वारा एक स्वयं सेवी को ढालपुर अस्पताल में नियुक्त कर दिया गया है और अब यहां पर लोगों को उर्दू भाषा में लिखे गए रिकॉर्ड को समझने में भी आसानी हो रही है.
दरअसल स्वास्थ्य विभाग के पास लोग जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र सहित अन्य दस्तावेजों का रिकॉर्ड लेने के लिए आते हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के पास साल 1884 से लेकर साल 1962 तक का रिकॉर्ड उर्दू भाषा में अंकित है. उर्दू भाषा की जानकारी ना होने के चलते यहां लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. वही कई बार बाहरी जिला से भी उर्दू भाषा के जानकार को बुलाकर उस रिकॉर्ड का अनुवाद करना पड़ता था. अब इन समस्याओं के समाधान के लिए स्थाई तौर पर एक स्वयंसेवी की नियुक्ति ढालपुर अस्पताल में की गई है.
स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इससे पहले भी स्वयंसेवी के तौर पर कुछ लोग अपनी सेवाएं दे चुके हैं. वहीं, रोजाना 8 से अधिक लोग ऐसे हैं जो उर्दू में अंकित रिकॉर्ड का अनुवाद करने के लिए यहां आते हैं, लेकिन स्वास्थ्य विभाग के पास भी उर्दू भाषा का कोई जानकार ना होने के कारण वह लोगों की मदद करने में सक्षम नहीं हो पाते थे. अब उर्दू भाषा का जानकार होने के चलते रोजाना लोगों को अपना रिकॉर्ड समझने में भी आसानी हो रही है और उस रिकॉर्ड को हिंदी भाषा में अनुवाद कर लोगों को भी दिया जा रहा है.
वहीं, जिला कुल्लू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर ने बताया कि भारत में जब मुगलों का राज था. तो उस दौरान छोटे-छोटे रियासतों के राजा दिल्ली दरबार में हाजिरी भरा करते थे और राजस्व संबंधी दस्तावेज भी वहां ले जाया करते थे. वहां पर राजस्व संबंधी दस्तावेजों का उर्दू में अनुवाद किया जाता था और बाकी राजा भी उसी उर्दू में लिखे हुए दस्तावेज का पालन करते थे. जिसके चलते काफी समय तक उर्दू भाषा का राज रहा. वहीं, हिमाचल प्रदेश में भी साल 1980 तक स्कूलों में उर्दू पढ़ाई जाती थी और कई लोग उर्दू के जानकार थे. उसके बाद स्कूलों में संस्कृत व अन्य विषय की शिक्षा शुरू की गई है.
ढालपुर के क्षेत्रीय अस्पताल में उर्दू भाषा के जानकार हारून रिशिदी ने बताया कि उन्होंने अपनी शिक्षा उर्दू भाषा में हासिल की है. इससे पहले भी कई पंचायतों में लोगों उन्हें उर्दू भाषा के अनुवाद के लिए ले जाते थे और अब वह जिला परिषद कुल्लू के अध्यक्ष पंकज परमार की मदद से यहां पर स्वयंसेवी के तौर पर कार्य कर रहे हैं. हारून रिशीदी ने बताया कि यहां पर पुराना रिकॉर्ड उर्दू भाषा में अंकित है. जिसका वह लोगों को हिंदी में अनुवाद कर दे रहे हैं. क्योंकि कई बार लोगों के पहचान पत्र, आधार कार्ड में जन्म तिथि में गड़बड़ होती थी. ऐसे में पंचायत व अन्य सरकारी कार्यालय के द्वारा उनसे पुराना रिकॉर्ड मंगवाया जाता था और उर्दू भाषा की जानकारी ना होने के चलते उन्हें काफी दिक्कतें उठानी पड़ती थी. अब यहां पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं और रोजाना 8 से अधिक लोग उर्दू भाषा का रिकॉर्ड अनुवाद करने के लिए यहां पहुंच रहे हैं.
वहीं, जिला परिषद अध्यक्ष पंकज परमार का कहना है कि जब उन्हें इस बात की जानकारी मिली कि स्वास्थ्य विभाग में लोगों को उर्दू भाषा का अनुवादक ना होने के चलते दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. तो उन्होंने हारून रिशीदी से संपर्क किया. लोगों की मदद करने के लिए अस्पताल में वह तैनात हो गए हैं और यहां पर पुराने रिकॉर्ड को हिंदी में अनुवाद किया जा रहा है. वहीं, उन्होंने जिला कुल्लू की जनता से भी आग्रह किया कि अगर किसी को उर्दू में लिखे हुए दस्तावेज की जांच करवानी हो तो इस बारे ढालपुर के क्षेत्रीय अस्पताल में तैनात हारून रिशीदी से भी संपर्क कर सकते हैं.
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