कुल्लू: हिमाचल में सावन मास का आज पहला सोमवार है. कोरोना संकट काल के चलते इस बार भोले के भक्त शिवालयों में भगवान भोलेनाथ का अभिषेक व अनुष्ठान नहीं कर पाएंगे. सावन मास में कई शुभ योग और पांच सोमवार आएंगे. खास बात यह है कि सोमवार से शुरुआत होकर सोमवार को ही सावन मास का समापन होगा.
पूरे भारत में भगवान शिव के प्रसिद्ध 12 ज्योतिरलिंग हैं. सावन मास के पहले सोमवार में ईटीवी भारत की खास पेशकश में में हम आपको महादेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां हर 12 साल बाद शिवलिंग आसमानी बिजली गिरने से खंडित होकर टुकड़ों में बंट जाता है.
जिला कुल्लू के पहाड़ों पर आज भी एक ऐसी पहाड़ी है जहां भगवान शिव की आज्ञा का देवराज इंद्र पालन कर रहे हैं. पहाड़ी पर बने मंदिर में आज भी आसमानी बिजली गिरती है, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं होता. कुल्लू शहर से बिजली महादेव की पहाड़ी लगभग 7 किलोमीटर दूर है.
खराहल घाटी के शीर्ष पर बसा बिजली महादेव का मंदिर आज भी देश-विदेश से आने वाले लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मान्यता है कि पहाड़ी रूप का दैत्य दोबारा जनमानस को कष्ट न पहुंचा सके, इसके लिए पहाड़ी के ऊपर शिवलिंग को स्थापित किया गया है और देवराज इंद्र को आदेश दिया गया कि वह हर 12 साल बाद शिवलिंग पर बिजली गिराएं.
माना जाता है कि आज भी उस आदेश का पालन हो रहा है और शिवलिंग पर बिजली का गिरना जारी है. दैत्य के वध के बाद बनी उस पहाड़ी को आज बिजली महादेव के नाम से जाना जाता है, जो आज देश-विदेश में शिवभक्तों के लिए आस्था का केंद बन गई है.विशालकाय सांप का रूप है कुल्लू घाटी
कुल्लू शहर में ब्यास और पार्वती नदी के संगम के पास एक ऊंचे पर्वत के ऊपर बिजली महादेव का प्राचीन मंदिर है. कुल्लू घाटी में ऐसी मान्यता है कि यह घाटी एक विशालकाय सांप का रूप है. सांप का वध भगवान शिव ने किया था.
साल में गिरती है आसमानी बिजली
मन्दिर के भीतर स्थापित शिवलिंग पर हर 12 साल बाद भयंकर आसमानी बिजली गिरती है. बिजली गिरने से मंदिर का शिवलिंग खंडित हो जाता है. यहां के पुजारी खंडित शिवलिंग के टुकड़े एकत्रित कर मक्खन के साथ इसे जोड़ देते हैं, कुछ ही माह बाद शिवलिंग एक ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है.कुलांत नामक दैत्य रोकना चाहता था ब्यास नदी का प्रवाह
कुल्लू घाटी के जानकारों के अनुसार बहुत पहले यहां कुलांत नामक दैत्य रहता था. दैत्य कुल्लू के पास की नागणधार से अजगर का रूप धारण कर मंडी की घोग्घरधार से होता हुआ लाहौल-स्पीति से मथाण गांव आ गया.