कुल्लू:हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में सेब के बाद अब जापानी फल भी बागवानों की आमदनी को बढ़ाने की दिशा में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. जापानी फल के तुड़ान में इन दिनों बागवान व्यस्त है और बाहरी राज्यों के व्यापारी भी जापानी फल की खेप को बाहरी मंडियों में पहुंच रहे हैं. ऐसे में सेब, अनार के साथ-साथ जापानी फल भी कुल्लू में बागबानों की आर्थिक का एक अहम जरिया बन गया है. जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां पर मात्र 283 हेक्टेयर भूमि में ही जापानी फल का उत्पादन होता है. अब बागवान इसे सेब के वैकल्पिक रूप में भी अपना रहे हैं.
दरअसल, कुल्लू के निचले इलाकों में मौसम में आए बदलाव के चलते सेब की खेती कम हो रही है और जापानी फल के प्रति अब लोगों का रुझान बढ़ रहा है. जापानी फल के प्रति रुझान का एक मुख्य कारण यह भी है कि इस फल के घर-द्वार पर ही बागवानों को ₹100 से लेकर ₹200 प्रति किलो तक दाम मिल रहे हैं. हालांकि इस बार पिछले साल की अपेक्षा उत्पादन कम रहा है, लेकिन अच्छे दाम मिलने से बागवान काफी खुश नजर आ रहे हैं.
जापानी फल की बात करें तो इसमें न्यूट्रीशियन और विटामिन सी की मात्रा अधिक है. जिस कारण इस फल की डिमांड अधिक रहती है. बता दें कि कुल्लू में जब सेब का सीजन खत्म हो जाता है तो उसके बाद जापानी फल का सीजन शुरू हो जाता है. इन दिनों जापानी फल से भरे हुए पेड़ लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं. दिसंबर माह में सभी फलों के पौधे खाली हो गए हैं, लेकिन जापानी फल के पौधे फलों से भरे हुए हैं. लाल रंग का यह जापानी फल अब बाहरी राज्यों के लोगों की भी पहली पसंद बन रहा है.
हिमाचल प्रदेश में जापानी फल की फुयु और हेचिया प्रजाति पाई जा रही है. इसमें फुयु प्रजाति के फल की मांग बाजार में अधिक है और बागवानों को इस फल की कीमत ₹200 प्रति किलो मिल रही है. जापानी फल की फुयु प्रजाति का फल कच्चा खाने वाला फल है. जबकि हेचिया प्रजाति के फल को खाने के लिए उसके पकने का भी इंतजार करना पड़ता है. कुल्लू की लगघाटी, मणिकर्ण घाटी, गड़सा, बजौरा, झिड़ी, हुरला में जापानी फल का अधिक उत्पादन होता है. हालांकि ऊपरी इलाकों में भी अब बागवान जापानी फल के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन कुल्लू के निचले इलाकों में बागवानों के द्वारा इसके पौधे लगाए गए हैं. पूरी दुनिया में जापानी फल की करीब 400 प्रजातियां है और हेचिया और फुयु पूरी दुनिया में बेहद लोकप्रिय है.
जानकारी के अनुसार, जापानी फल को सबसे पहले चीन में उगाया गया और उसके बाद चीन, जापान से होते हुए यह कोरिया पहुंचा. ऐसे में भारत में भी जापानी फल के पौधे यूरोपियन के द्वारा 1921 में ले गए थे. साल 1941 में शिमला के बागवानों ने सेब के पौधों में जापानी फल के पौधे लगाए थे और एक अनुमान के मुताबिक हिमाचल प्रदेश में करीब 10000 किसान अपनी भूमि पर जापानी फल की खेती करते हैं.