कुल्लू: कुल्लू का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है. कुल्लू दशहरा इस बार 24 अक्टूबर से 30 अक्टूबर तक आयोजित किया जाएगा. इस अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव को पूरे भारत में देवी-देवताओं के महाकुंभ के नाम से जाना जाता है. दशहरा उत्सव के दौरान यहां पर पूरे कुल्लू जिले से 300 से ज्यादा देवी-देवता हर साल शिरकत करते हैं. ये देवी-देवता भगवान रघुनाथ के सम्मान में मनाए जाने वाले दशहरा उत्सव में 7 दिनों तक ढालपुर में अस्थाई शिविरों में रहते हैं. इस दौरान दूर-दूर से लोग इस दशहरा उत्सव में देवताओं के महासंगम को देखने के लिए आते हैं. वहीं, कुल्लू में कुछ ऐसे भी देवी-देवता हैं जो कभी भी अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में शिरकत नहीं करते हैं.
कुल्लू दशहरे में नहीं आते ये देवता: जिला कुल्लू अपनी दैवीय परंपराओं और दशहरा उत्सव के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ देवता ऐसे हैं जो दशहरा उत्सव में भाग नहीं लेते हैं. कुल्लू जिले की लग घाटी में देवी देवताओं के दादा कहे जाने वाले कतरूसी नारायण आज भी दशहरा उत्सव में शिरकत नहीं करते हैं. हालांकि, मान्यता है कि पूर्व में राजाओं द्वारा देवता को दशहरा उत्सव में लाने के बहुत प्रयास किए गए, लेकिन देवता की शक्ति के आगे वे हार मान गए. कहा जाता है कि पुराने दौर में कुल्लू के राजा ने देवता को दशहरा उत्सव में लाने के लिए सेना के बल का प्रयोग किया, लेकिन जब सेना लग घाटी के दड़का नामक स्थान पर पहुंची, तो यहां पर आसमान से लोहे के ओले बरसने लगे. जिसके चलते सेना ने अपनी हार मान ली और वहीं से वापस लौट आए. देवता कतरूसी नारायण का मंदिर लग घाटी के भलयानी में स्थित है. यहां पर देवता के सम्मान में हर साल विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. पूरे इलाके में देवता कतरूसी नारायण को देवी-देवताओं का दादा की उपाधि दी गई है.
देवी-देवताओं के दादा कतरूसी नारायण ये भी पढे़ं:International Dussehra Festival Kullu: अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का इतिहास पढ़कर आप भी हो जाएंगे दंग, ऐसी बातें जो आपने सुनी नहीं होंगी!
देवता से जुड़ी पौराणिक मान्यता: ऐसी मान्यता है कि लग रियासत को जीतने के बाद भी कुल्लू के राजा जगत सिंह यहां की देव संस्कृति को प्रसन्न नहीं कर सका. यहां के देवताओं को कुल्लू दशहरा में शामिल करने में असफल रहा. जिसके चलते लग घाटी के देवता कुल्लू दशहरा उत्सव में शामिल नहीं होते हैं. इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि उस दौर में तत्कालीन कुल्लू के राजा जगत सिंह द्वारा लग रियासत पर विजय हासिल करने के उद्देश्य से राजा सुल्तान चंद और जोगचंद के साथ युद्ध किया गया था. इस युद्ध में कुल्लू के राजा से दोनों राजा पराजित हो गए. ऐसे में कुल्लू के राजा जगत सिंह ने लग रियासत पर विजय हासिल कर ली और जनता पर भी राज किया, लेकिन यहां के देवी देवताओं ने राजा को अपनी देव संस्कृति में कभी कोई स्थान नहीं दिया. जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं. लग घाटी के नारायण देवता और यहां की आदिशक्तियां कुल्लू दशहरा उत्सव में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवाती हैं.
कुल्लू जिले की लग घाटी के देवता कतरूसी नारायण राजा जगत सिंह से अप्रसन्न हैं देवता: प्रसिद्ध इतिहासकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह को कुष्ठ रोग से मुक्त होने के लिए अयोध्या से श्री राम लक्ष्मण सीता और हनुमान जी की मूर्तियों को लाना पड़ा. इन मूर्तियों को 1651 में पहली बार कुल्लू लाया गया. 1651 तक ये मूर्तियां गोमती नदी के किनारे संगम स्थल मकराहड में रखी गई. मकराहड और लग रियासत साथ-साथ में ही थी, सिर्फ ब्यास नदी ही अलग-अलग करती थी. ऐसे में कल्लू के राजा जगत सिंह द्वारा राजा सुल्तान चंद और जोगचंद पर हमला किया गया और दोनों को मारा गया. उसके बाद ढालपुर मैदान में बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आयोजन किया गया. जिसमें जिला कुल्लू के विभिन्न इलाकों से देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन लग घाटी के देवी देवता उस दौरान भी इस उत्सव में शामिल नहीं हुए और ना ही आज वह इस उत्सव में शामिल होते हैं.
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