कुल्लूः देवभूमि हिमाचल के जिला कुल्लू का ऐतिहासिक गांव नग्गर, जो रियासत काल के दौरान कुल्लू की पुरानी राजधानी भी रही है. यहां हर साल 'गनेड उत्सव' का आयोजन बड़े ही धूमधाम से किया जाता है. इस उत्सव में पुरुष आपस में एक-दूसरे को गालियां देने की पंरपरा निभाते हैं. इस उत्सव में महिलाएं और युवतियां भी शामिल होती हैं, लेकिन कोई भी इस दौरान गालियों का विरोध नहीं करता. क्योंकि ये परंपरा सदियों से चली आ रही है और यहां के बाशिदें भी इसे बड़ी ही आस्था के साथ निभाते हैं. इस उत्सव में दो गांव के लोग हिस्सा लेते हैं.
अनेक लोकगाथाएं प्रचलित
गनेड उत्सव के पीछे स्थानिय लोगों में अनेक लोकगाथाएं प्रचलित हैं. एक गाथा के मुताबिक पुराने समय में एक राज समारोह में सभी लोग नाच गा रहे थे. इनमें राजा और उसका साला भी शामिल था.समारोह के बाद जब राना ने रानी से पूछा कि आज सबसे अच्छा कौन नाचा तो रानी ने स्पष्ट तौर पर अपने भाई का नाम लिया, जिससे राजा ने गुस्से में अपनी तलवार से रानी के भाई का सिर कलम कर दिया. इस प्रकरण के बाद रानी ने आवेश में बरामदे से छंलाग लगाकर अपनी जान देने की धमकी दे डाली. नहीं तो राजा को अपने भाई को जिंदा करने की शर्त रखी.
देव शक्ति से जीवित हो उठा रानी का भाई
लोकगाथाओं के अनुसार मेढ़े का सिर लगाने के बाद रानी का भाई देव शक्ति से जीवित हो उठा और तब से गनेड उत्सव का आयोजन किया जाता है.इस दिन मेढ़े यानी की नर भेड़ के पुराने सींगों को निकालकर उसकी पूजा की जाती है. इस उत्सव में त्रिपुरा सुंदरी के जेठाली के सर के ऊपर सिंग लगाए जाते हैं और अश्लील दोहे भी बोले जाते हैं. जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पंहुचते हैं.