कुल्लू: हिमाचल प्रदेश में पहली बार आसमानी बिजली गिरने वाली घटनाओं का अब डाटा मेंटेन किया जा रहा है. इन घटनाओं पर किस तरह से रोक लगाई जा सकती है, इसके बारे में भी विशेषज्ञों द्वारा काम किया जा रहा है, ताकि आसमानी बिजली गिरने के कारण लोगों को होने वाले नुकसान को रोका जा सके. जिला कुल्लू के जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल में इसके लिए लाइटनिंग सेंसर स्थापित किया गया है. जो आसमान से बिजली गिरने की घटनाओं को रिकॉर्ड करता है. यह लाइटनिंग सेंसर आईआईटीएम यानी इंडियन इंस्टीट्यूट आफ ट्रॉपिकल मेंटरोलॉजी पुणे द्वारा स्थापित किए गए हैं. भारत में यह दोनों संस्थान आसमानी बिजली पर अध्ययन कर रहे हैं, ताकि आने वाले समय में आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके और इससे होने वाले नुकसान को भी रोका जा सके.
कुल्लू में लाइटिंग सेंसर:जीबी पंत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट मोहल के वैज्ञानिकों के अनुसार लाइटनिंग सेंसर के माध्यम से खराब मौसम के दौरान आसमानी बिजली के गिरने की घटना रियल टाइम में कैप्चर होती हैं. इसके माध्यम से बिजली गिरने के फ्रीक्वेंसी कितनी थी और इससे कितना नुकसान हुआ है, इसका रियल डाटा मोहल स्थित केंद्र के साथ-साथ पुणे स्थित आईआईटीएम के मुख्यालय में भी रिकॉर्ड होगा. प्रदेशभर के साथ कुल्लू में स्थापित यह लाइटिंग सेंसर में रिकॉर्ड हुई बिजली गिरने की घटनाओं से तैयार किया जाएगा. डाटा को बढ़ाने और उसकी समीक्षा करने पर वैज्ञानिक इस बात का पता लगाएंगे की आसमानी बिजली आखिर क्यों गिरती है. बिजली गिरने के चलते किन कारणों से नुकसान होता है, ताकि आने वाले समय में बिजली के गिरने की घटनाओं का अनुमान लगाकर होने वाले नुकसान को काम किया जा सके.