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Kath kuni Architecture: भूकंप भी इन घरों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता!, 100 सालों से ज्यादा समय से खड़े हैं काष्ठकुणी शैली में बने मकान - काष्ठकुणी शैली मकानों की खासियत

हिमाचल में आपदा और भूकंप से बचने के लिए काष्ठकुणी शैली में बने मकान काफी कारगर साबित हो सकते हैं. काष्ठकुणी शैली में बने घर 100 से ज्यादा समय से भी आज भी अडिग खड़े हैं. वहीं, इस शैली के मकान पर्यटकों को भी खूब भाते हैं. पढ़िए पूरी खबर...(kath kuni architecture) (kullu Wooden Style Building) (Earthquake Resistant House)

Kath kuni Architecture
काष्ठकुणी शैली

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Sep 11, 2023, 2:47 PM IST

कुल्लू:हिमाचल प्रदेश में इस साल भारी बारिश और बाढ़ के चलते करोड़ों रुपए की संपत्ति नष्ट हो गई. वहीं, हजारों मकान भी प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गए. बाढ़ और बारिश के बाद हिमाचल प्रदेश भूकंप की दृष्टि से भी काफी संवेदनशील है. कई बार सरकार ने भी हिमालय के कई इलाकों को भूकंप के लिहाज से काफी खतरनाक बताया है. ऐसे में भूकंप और प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए हिमाचल की पहाड़ी काष्ठकुणी शैली में बने मकान कारगर साबित हो सकती है.

काष्ठकुणी शैली के मकानों की संख्या कम: हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्य की अगर बात करें तो यहां पर काष्ठकुणी शैली के मकान की संख्या अब काफी कम रह गई है, लेकिन भूकंप जैसी आपदा में यह मकान नुकसान से बचाने में काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं. क्योंकि काष्ठकुणी शैली में बनाए गए मकान के संरचना इस तरह से होती है कि बारिश और भूकंप भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं. ऐसे में काष्ठकुणी शैली के मकान अब पहाड़ी इलाकों में सैलानियों की भी पसंद बनते जा रहे हैं. ऐसे मकानों में सैलानी भी रहना खूब पसंद कर रहे हैं.

हिमाचल में काष्ठकुणी शैली में बने घर काफी कारगर

काष्ठकुणी शैली में बने घरों में सीमेंट नहीं यूज होता:हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में पहले लकड़ी की उपलब्धता अधिक होती थी और ग्रामीण इलाको में सड़कें न होने के चलते सीमेंट, रेत व अन्य निर्माण सामग्री गांवों तक पहुंचानी मुश्किल होती थी. ग्रामीण इलाको में जंगल में पत्थर और मिट्टी आसानी से उपलब्ध होने के चलते लोग यहां काष्ठकुणी शैली के मकानों को प्राथमिकता देते थे, लेकिन आजकल लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण और आग से बचाव के कारण लोग पक्के मकानों को बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं. प्रदेश के दुर्गम क्षेत्रों में कई गांव ऐसे हैं, जहां काष्ठकुणी शैली के मकान देखने को मिल जाते हैं, लेकिन शहरों में इनकी संख्या नाम मात्र ही रह गई है.

लकड़ी और पत्थर से बनाए जाते हैं ये घर: काष्ठकुणी शैली के मकानों में अधिकतर लकड़ी और पत्थर का इस्तेमाल होता है. इस शैली के मकान में सीमेंट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता है और दीवारों पर मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बने पदार्थ का पलस्तर किया जाता है. साथ में लकड़ी इस्तेमाल की जाती है. गांव में घर एक दूसरे से सटे होने तथा घर की निचली मंजिल में घास व लकड़ी रखने की वजह से आग की एक चिंगारी पूरे घर को राख में बदलने को देरी नहीं लगाती. कुल्लू जिला में अब तक भीषण अग्निकांडों में काष्ठकुणी शैली से बने पूरे के पूरे गांव भी आग की भेंट चढ़े चुके हैं. मणिकर्ण घाटी का मलाणा गांव दो बार पूरी तरह से जल चुका है, लेकिन पर्यावरण के लिहाज से यह मकान काफी सहायक सिद्ध होते हैं.

काष्ठकुणी शैली में घरों को लकड़ी और पत्थरों से बनाया जाता है.

पर्यटकों की पसंद बन रहा काष्ठकुणी शैली का घर: हिमाचल के अलावा जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड के पहाड़ों पर बने लकड़ी के इन मकानों को देखकर पर्यटक भी उनकी ओर खींचे चले आते हैं. हालांकि, बीते कुछ दशकों से जिला कुल्लू में कंक्रीट के जंगल बनने शुरू हुए और लोगों ने सीमेंट के मकान बनाने शुरू कर दिए. वहीं, पर्यावरण में आए बदलाव के चलते अब एक बार फिर से लोग पत्थर और लकड़ी से बने मकानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. ग्रामीण इलाकों में लोग काष्ठकुणी जिन्हें कुल्लवी बोली में काठकुणी भी कहा जाता है, उसी शैली के भवनों का निर्माण कर रहे हैं.

काष्ठकुणी शैली में बने मकान

काष्ठकुणी शैली में बने घर की खासियत: इस शैली से बने मकानों की खासियत यह है कि गर्मियों में यह ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं. गर्मियों के मौसम में भी ऐसे घरों में पंखों की जरूरत नहीं होती है. यह मकान भूकंपरोधी भी होते हैं. क्योंकि इसके निर्माण में सीमेंट का उपयोग नहीं होता. साथ ही इसकी दिवारों में थोड़ा गैप होता है, जिसकी वजह से भूकंप के समय तेज झटके इसे नुकसान नहीं पहुंचाते: जिसका प्रमाण जिला कुल्लू का नग्गर कैसल और चैहणी कोठी है. इस शैली के घर व मंदिर बनाने वाले कारीगर कई बार तो लोहे की कील का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं. लकड़ी को आपस में जोड़ने के लिए लकड़ी की ही कील तैयार कर उसे जोड़ा जाता है. इस शैली की खासियत लकड़ी पर की गई नक्काशी है, जो यहां की कला की एक विशेष पहचान है. इसे हाथ से उकेरा जाता है और इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है.

आपदा और भूकंप में इन घरों को नुकसान का नहीं खतरा

काष्ठकुणी शैली के कारीगरों की बढ़ रही डिमांड: जिला कुल्लू के नग्गर में इस शैली के मकान निर्माण का प्रशिक्षण दे रहे युवा राहुल भूषण ने बताया कि लकड़ी, पत्थर और मिट्टी से बने हुए मकानों का डिजाइन वह स्वयं तैयार करते हैं. इसके बाद इस पर कार्य कर मकान तैयार कर देते हैं. शुरू में उनके पास तीन कारीगर थे. अब धीरे-धीरे कार्य बढ़ता गया और आज मेरे पास 80 कारीगर काम कर रहे हैं. कुल्लू मनाली में घूमने आए पर्यटक भी काष्ठकुणी शौली से बने मकानों को पसंद करते हैं. आज भी कुल्लू जिला में कई ऐसे मकान है जो कई 100 सालों में भी जस के तस हैं. इसमें नग्गर कैसल और चैहणी कौठी जो कि बड़े से बड़ा भूकंप आने पर भी इनकों कोई नुकसान नहीं पहुंचा है. यह मकान भूकंप रोधी होते हैं.

काष्ठकुणी शैली में बने घर होते हैं भूकंप रोधी

क्रंकीट के भवनों से पर्यावरणों को नुकसान: हिमालय नीति अभियान के राष्ट्रीय संयोजक गुमान सिंह का कहना है कि आज पूरे प्रदेश में कंक्रीट के भवन बनते जा रहे है. जिससे पर्यावरण को भी खासा नुकसान पहुंचा है. कंक्रीट के भवन बनने के चलते अब गर्मी बढ़ने लगी है और मौसम में भी काफी बदलाव हुआ है. पहले ग्रामीण इलाको में काष्ठकुणी शैली के किए मकान बनाए जाते थे. क्योंकि इसके बनने से एक तो पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं होता था और ग्रामीण इलाकों के लिए भी यह काफी अनुकूल माने जाते थे. अब लोगों का रुझान एक बार फिर से इस शैली के मकान की ओर बढ़ा है, लेकिन अब इस तरह के मकान बनाने में भी काफी खर्च हो रहा है. ऐसे में इस मकान के निर्माण के लिए सरकार को लकड़ी हर जगह पर सही कीमत पर उपलब्ध करवानी चाहिए.

काष्ठकुणी भवनों का सैलानी करा रहे एडवांस बुकिंग: जिला कल्लू के मणिकर्ण, मनाली और बंजार की बात करें तो वहां पर भी अब इसी शैली में कहीं भवनों का निर्माण किया जा रहा है. जिसे पर्यटक भी काफी पसंद कर रहे हैं. यहां पर ऐसे भवनों में रहने के लिए सैलानी एडवांस में बुकिंग कर रहे हैं. बंजार में पर्यटन कारोबार कर रहे हरी कृष्ण और दिलीप सिंह का कहना है कि अब सैलानी कंक्रीट के भवन के बजाय लकड़ी व पत्थर से बने मकानों को प्राथमिकता दे रहे हैं. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोगों को रोजगार मिल रहा है. होमस्टे के लिए भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अधिकतर इन्हीं भवन को रजिस्टर्ड कर रहे हैं.

काष्ठकुणी शैली के मकान पर्यटकों की बन रहे पसंद

1905 में आये प्रलयकारी भूकंप में खड़ा रहा कैसल किला: साहित्यकार डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में कई इमारतें आज भी बुलंद है. जिन्होंने 1905 में आए भूकंप का सामना किया है. इनमें जिला कुल्लू के बंजार में चेहनी कोठी और नग्गर का कैसल किला प्रमुख है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में भी कई ऐसे पुराने मंदिर हैं, जो इसी शैली से बने हुए हैं. डॉक्टर सूरत ठाकुर का कहना है कि अब फिर से लोगों का रुझान इस शैली से बने मकानों की ओर हो रहा है.

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