कुल्लू:हिमाचल विधानसभा चुनाव 2022 में जहां राजनीतिक दल अपने-अपने वायदे लेकर जनता के बीच जा रहे हैं. तो वहीं, इन वायदों से प्रदेश की जनता को भी आस जगी हुई है कि सरकार बनने के बाद उनकी मुश्किलों का अंत होगा. वहीं, हिमाचल प्रदेश के बागवान भी विधानसभा चुनाव में अपने मुद्दों को प्रमुखता से रख रहे हैं. ताकि बागवानी संबंधी जो भी समस्याएं इतने सालों से बागवान झेल रहे हैं, उसका भी जल्द से जल्द समाधान निकाला जा सके. (Farmer and Growers demand in Himachal) (Himachal Assembly Elections 2022)
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में कोल्ड स्टोर और गुणवत्ता युक्त पौधे प्रमुख मांगों में शामिल रहेंगे. इसके अलावा प्रदेश के विभिन्न इलाकों में लैब भी स्थापित किए जाए और दवाओं पर सब्सिडी को एक बार फिर से बहाल किया जाए. वहीं, बागवान चाहते हैं कि प्रदेश में अच्छी कंपनियां भी इस क्षेत्र में आगे आएं, ताकि बागवानों के उत्पादों के दाम रेगुलेट हो सके और बागवानों को नुकसान न उठाना पड़े. (Cold store Demand in Himachal) (Quality plants demand in Himachal)
हिमाचल प्रदेश में 5,000 करोड़ की सालाना सेब की अर्थव्यवस्था है. प्रदेश में सत्ता में कोई भी सरकार रही हो, लेकिन बागवानों को उपेक्षा का दंश झेलना पड़ा है. कांग्रेस और भाजपा के सत्ता पर रहते हुए विदेशी सेब पर आयात शुल्क 100 फीसदी लगाने की मांग प्रदेश के बागवान प्रमुखता से करते रहे हैं, लेकिन सुनवाई आज दिन तक नहीं हुई. कश्मीर की तर्ज पर हिमाचली सेब को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) भी नहीं मिला है. बागवानों को उनके बगीचों के पास न तो छोटे कोल्ड स्टोर मिले और न ही छोटी विधायन यूनिटें स्थापित हो सकीं. (Issues in Himachal Assembly Elections 2022) (Growers demand in Himachal)
हर साल सस्ते कार्टन और पैकिंग सामग्री का मामला गर्माता रहा है, लेकिन बागवानों को ज्यादा राहत नहीं मिली. कार्टन पर 18 फीसदी जीएसटी और यूनिवर्सल कार्टन का मसला ठंडे बस्ते में पड़ने से बागवान मंडियों में आर्थिक शोषण के शिकार होते रहे हैं. प्रदेश की 5,000 करोड़ की सेब अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा मार विदेशी सेब की देश की मंडियों में धमक से पड़ी है. पहले कांग्रेस और फिर भाजपा सरकार से मामला उठाया जाता रहा है कि विदेशी सेब पर आयात शुल्क शत प्रतिशत लगाया जाए.