कुल्लू:हिमाचल की संस्कृति और त्योहार ही प्रदेश को अन्य राज्यों से अलग बनाती है. यहां पर नया साल शुरू होते ही कई त्योहारों को मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है जो साल की अंत तक रहता है. हिमाचल की प्राचीनतम परम्पराएं ही यहां की पहचान है. यहां के लोग आज भी अपनी पौराणिक परंपरा का निर्वहन करते हैं. यह त्योहार ही यहां के लोगों को आज भी एक दूसरे से जोड़े हुए है जिसके लिए यहां के लोग प्रशंसा के पात्र है.
फाल्गुन सक्रांति में मनाया जाता है ये त्योहार-ऐसा ही एक पौराणिक त्योहार आज भी हिमाचल प्रदेश में जिला कुल्लू के उपमंडल बंजार में मनाया जाता है 'फागली त्योहार'. इन दिनों ग्रामीण इलाकों में फागली उत्सव मनाया जा रहा है. फागली उत्सव में ग्रामीणों द्वारा मुखौटे पहने जाते हैं जो काफी डरावने दिखते हैं. इन्हें पहनने के बाद वे नृत्य भी करते हैं. फागली उत्सव तीर्थन घाटी के विभिन्न गांवों में हर साल 13 से 15 फरवरी तक फाल्गुन सक्रांति के दौरान मनाया जाता है.
मुखौटा नृत्य से भगाई जाती हैं बुरी शक्तियां-कुछ चयनित किए हुए लोगों द्वारा मुखौटा नृत्य किया जाता है. इस नृत्य के जरिए गांव से बुरी शक्तियों को भगाया जाता है. जिससे पूरे साल भर गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है. इसी कड़ी में तीर्थन घाटी के गांव पेखड़ी, नाहीं , तिंदर, डिंगचा, फरियाडी, शर्ची, बशीर और कलवारी व अन्य गांवों में आजकल फागली उत्सव की धूम मची हुई है. आजकल तीर्थन घाटी में पर्यटक घूमने फिरने के साथ साथ यहां के प्राचीनतम मुखौटा नृत्य देखने का भी भरपूर आनंद ले रहे हैं.
फागली उत्सव देखने पहुंच रहे पर्यटक-ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क और ट्राउट मछली के लिए मशहूर उपमंडल बंजार की तीर्थन घाटी पर्यटकों के लिए एक पसंदीदा स्थल बन गया है. अब पर्यटक यहां पर बाहरी राज्यों से ये मुखौटा नृत्य देखने के लिए पहुंच रहे हैं. पर्यटकों को ये फागली उत्सव और मुखौटा नृत्य काफी लुभा रहा है. यहां पर दूर दराज पहाड़ी क्षेत्र में बसे छोटे-छोटे सुंदर गांव, यहां की नदियां नाले और झरने, चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों, जंगलों और बर्फ से ढकी ऊंची पर्वतशृंखलाएं इस घाटी की सुंदरता को चार चांद लगती हैं. प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ पर्यटकों को यहां की प्राचीनतम संस्कृति भी खूब भा रही है.