कुल्लू: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिमाचल प्रदेश में पेड़ों के कटान और भूमि हस्तांतरण पर रोक लगाए जाने के बाद प्रदेश में विकास कार्य ठप हो गए हैं. हालांकि, अदालत ने प्रोटेक्शन वर्किंग सर्किल के तहत एफसीए और एफआरए दोनों कानूनों के तहत वन भूमि के हस्तांतरण पर रोक लगाई है, लेकिन इस क्षेत्र के बाहर ऐसी कोई पाबंदी नहीं है.
कुल्लू जिला की करीब 70 वन अधिकार समितियों ने प्रदेश के मुख्य सचिव जो वन अधिकार अधिनियम 2006 की राज्य स्तरीय निगरानी समिति के अध्यक्ष भी है को पत्र भेज कर मांग की है कि एफआरए के तहत वन भूमि हस्तांतरण प्रक्रिया की मंजूरी जारी रखने के लिए मार्गदर्शन एवं जरूरी दिशा निर्देश जारी किए जाए, ताकि पंचायत स्तर विकासात्मक कार्यों को अंजाम दिया जा सके.
हिमालयन नीति अभियान के उपाध्यक्ष एवं स्वैच्छिक संगठन सहारा के अध्यक्ष राजेंद्र चौहान का कहना है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश द्वारा हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम 2006 की धारा 3(2) के अंतर्गत वन मंडलीय अधिकारी की शक्तियों को संयमित कर दिया गया है. साथ ही पेड़ों के काटने पर पूर्णतया रोक लगा दी गई है.
इसके साथ ही वन कार्य योजना के तहत प्रोटेक्शन वर्किंग सर्किल में आने वाले जंगल के भू भाग में एफसीए और एफआरए दोनों कानूनों के तहत वन भूमि हस्तांतरण पर कोर्ट की अगली सुनवाई तक रोक लगा दी गई है. साथ में ही कोर्ट के इस आदेश के अनुसार एफसीए अधिनियम के तहत गैर वानिकी कार्य के लिए वन भूमि हस्तांतरण पर भी रोक लगा दी गई है.