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कुल्लू दशहरा: रथ मैदान में लालड़ी नृत्य का आयोजन, CM जयराम ने डाली नाटी - कुल्लू में सीएम का डांस

लालड़ी नृत्य में सभी पुरुष नर्तक कुल्लवी टोपी, काली जेकट, सफेद कमीज और पायजामा में नृत्य किया और महिलाएं कुल्लवी पट्टू और धाठू में नृत्य करती रही. उन्होंने कहा कि इस नृत्य को 'संवाद नृत्य' भी कहा जा सकता है.

कुल्लू में जमकर थिरके सीएम जयराम ठाकुर

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Published : Oct 13, 2019, 10:10 PM IST

कुल्लू: अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के छठे दिन लालड़ी नृत्य का आयोजन किया गया. इस नृत्य में प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर मुख्यातिथि के रूप में शामिल हुए. रथ मैदान में आयोजित लालड़ी नृत्य में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी खूब थिरके. वही, वन मंत्री गोविंद ठाकुर, सांसद राम स्वरूप भी विशेष रूप से शामिल रहे.

कुल्लवी एसोसिएशन के अध्यक्ष जीसी चंबियाल ने बताया कि लालड़ी नृत्य में सभी पुरुष नर्तक कुल्लवी टोपी, काली जेकट, सफेद कमीज और पायजामा में नृत्य किया और महिलाएं कुल्लवी पट्टू और धाठू में नृत्य करती रही. उन्होंने कहा कि इस नृत्य को 'संवाद नृत्य' भी कहा जा सकता है. इसमें लोकगीतों की उन्मुक्त धारा को खुली उड़ान की तुकबंदी का रूप दिया जाता है. इसमें प्रायः नियम यह रहता है कि जिस नर्तक दल की पंक्ति (टप्पा) न जुड़ सके, वह पराजित समझी जाती है.

वीडियो.

पहले के समय मे कुल्लू जनपद में लालड़ी गाने वालों की टोलियां (युवतियां) दशहरा मेले के दिनों में रात के समय बारी-बारी प्रत्येक घर में जाकर लालड़ी नृत्य रात-रात भर करती हैं. इसमें नर्तक ही नृत्य करते हैं. दूसरे खड़े-खड़े उसका उत्तर ढूंढते हैं, जब एक दल चुप हो जाता है तो खड़े लोग (नर्तक) नाचने लगते हैं.

गांव के देव स्थानों पर इसमें स्त्री नर्तक दल दो पंक्तियों में बंट जाते हैं और आमने-सामने खड़े हो जाते हैं. एक दल लोकगीत की एक पंक्ति गाना आरंभ करता हुआ कमर कुछ झुकाकर, दोनों हाथों से तालियां बजाता है और जब तक गीत की एक पंक्ति पूरी नहीं हो जाती नर्तक पंक्ति आगे बढ़ती जाती है और दूसरा नर्तक दल पीछे हटते हुए नाचता है. जब लोकगीत की पंक्तियां पूरी हो जाती हैं, तब पहली पंक्ति वाला नर्तक दल खड़ा हो जाता है और दूसरी नर्तक पंक्ति उसी तरह नीचे झुकती आगे बढ़ती, तालियां बजाती और गाने की दूसरी पंक्ति पूरी करती हैं और यही क्रम चलता रहता है.

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि इस तरह के आयोजन नियमित रूप से होते रहेंगे और विशेषकर यह अन्तरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का आकर्षण बने. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है और हमारी पुरातन संस्कृति और समृद्ध परम्पराएं धीरे-धीरे समाप्त हो रही हैं. उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे संस्कृति के संरक्षण के लिए आगे आएं.

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