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बारिश-ओलावृष्टि से खतरे में स्टोन फ्रूट, समय से पहले खिले थे फूल, अब मौसम की मार से घट सकता है उत्पादन

Hailstorm Hit Stone Fruit Crop in Himachal: मौसम में बार-बार आ रहे बदलाव के चलते हिमाचल में इस बार स्टोन फ्रूट की फसल पर खतरा मंडरा रहा है. इस बार जहां स्टोन फ्रूट में समय से पहले फ्लावरिंग हुई है, वहीं बारिश-ओलावृष्टि से फसलों को नुकसान रहा है. अगर आने वाले दिनों में मौसम ऐसा ही बना रहा तो इन फलों का उत्पादन घट सकता है.

बारिश-ओलावृष्टि से खतरे में स्टोन फ्रूट
बारिश-ओलावृष्टि से खतरे में स्टोन फ्रूट

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Published : Apr 1, 2023, 12:56 PM IST

Updated : Apr 1, 2023, 1:10 PM IST

कुल्लू:हिमाचल प्रदेश में बीते एक हफ्ते से मौसम का मिजाज बदला हुआ है. प्रदेश में कभी बारिश हो रही है तो कभी ओलावृष्टि. जिसका असर खासकर फसलों पर देखने को मिल रहा है. ऐसे में बार-बार बदलते मौसम से किसान-बागवानों की चिंता भी बढ़ गई है. हिमाचल के निचले इलाकों में गुठलीदार फलों की फसल पर मौसम की ये बेरुखी भारी पड़ रही है. गुठलीदार फलों के पौधों में इन दिनों नमी की कमी है. वहीं, तापमान में बार-बार उतार चढ़ाव से फलों की सेटिंग भी प्रभावित हो रही है.

स्टोन फ्रूट में समय से पहले खिले फूल: मौसम में आ रहे इस बदलाव के चलते इस बार में स्टोन फ्रूट में करीब 20 दिन पहले फ्लावरिंग हुई है. वहीं, फलों की सेटिंग के समय बारिश होने से इसके उत्पादन पर भी खासा प्रभाव देखने को मिलेगा. हालांकि हिमाचल प्रदेश में फसलों के लिए बारिश संजीवनी साबित हो रही है. क्योंकि हिमाचल प्रदेश में कई जगह आलू, मटर, मसर, गेहूं, जौ आदी की फसल बीजी गई है और मार्च माह में हुई बारिश से इन फसल को फायदा होगा. ऐसे में किसानों की आर्थिकी भी मजबूत होगी. लेकिन गुठलीदार फलों का उत्पादन इस साल खासा प्रभावित हो सकता है.

इस बार समय से पहले हुई स्टोन फ्रूट में फ्लावरिंग.

भारी पड़ सकती है मौसम की मार: हिमाचल प्रदेश में आडू, पलम, खुबानी, चेरी और बादाम जैसे गुठलीदार फलों का उत्पादन होता है. हालांकि इस बार फ्लावरिंग जल्दी हुई है, लेकिन अचानक हो रही बारिश व ओलावृष्टि से इनके उत्पादन में कमी देखने को मिल सकती है. हिमाचल प्रदेश में गुठलीदार फलों की सबसे अधिक पैदावार शिमला, सोलन, सिरमौर, कुल्लू, मंडी के इलाकों में होती है.

स्टोन फ्रूट पर भारी पड़ सकती है मौसम की मार.

हिमाचल में सेब का होता है सबसे ज्यादा उत्पादन:हिमाचल प्रदेश के शिमला में 48,178 हेक्टेयर, कुल्लू में 31,000, किन्नौर में 12,712, कांगड़ा में 40,696, मंडी में 33,317, सिरमौर में 15,285, ऊना में 6,097, चंबा में 16,912, सोलन में 6,036, हमीरपुर में 7,737, बिलासपुर में 8,354 और लाहौल स्पीति में 1,815 हेक्टेयर भूमि पर बागवानी की जाती है. जिसमें सबसे ज्यादा उत्पादन सेब का होता है. वहीं, अन्य फलों की ओर भी बागवान अपना रुझान दिखा रहे हैं.

बारिश-ओलावृष्टि से खतरे में स्टोन फ्रूट.

जिला कुल्लू की अगर बात करें तो यहां के पांच खंडों कुल्लू, नग्गर, बंजार, निरमंड और आनी में साल 2021 में 6,305 मीट्रिक टन पलम का उत्पादन किया गया था. जबकि, साल 2022 में यहां 8,152 मीट्रिक टन पलम का उत्पादन हुआ था. बात अगर नाशपती की करें तो यहां पर साल 2022 में 6,556 मीट्रिक टन नाशपति का उत्पादन किया गया था और 2022 में इस उत्पादन में गिरावट आई थी. जिस कारण 4,229 मीट्रिक टन नाशपति का ही उत्पादन हो पाया था. वहीं, अनार की फसल की बात करें तो साल 2021 में अनार की फसल का उत्पादन 2,514 मीट्रिक टन ही रहा. वहीं, साल 2022 में 2,089 मीट्रिक टन अनार का उत्पादन दर्ज किया गया था.

ऐसा ही रहा मौसम का मिजाज को घट सकता है उत्पादन.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ: कुल्लू जिला बागवानी विभाग के उपनिदेशक बीएम चौहान का कहना है कि जिले में करीब 13,000 हेक्टेयर भूमि पर गुठलीदार फलों की पैदावार की जा रही है. लेकिन, मौसम में बार-बार आ रहे बदलाव के चलते फ्लावरिंग पर भी इसका असर पड़ रहा है. जिससे आने वाले समय में इन फलों के उत्पादन में कमी देखी जा सकती है. अगर आने वाले दिनों में मौसम सही रहा तो इन फलों का उत्पादन बढ़ भी सकता है.

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Last Updated : Apr 1, 2023, 1:10 PM IST

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