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KULLU: रघुनाथपुर में मनाया गया अन्नकूट पर्व, अनाज की ढेरी पर विराजे भगवान रघुनाथ - रघुनाथपुर में अन्नकूट उत्सव

भगवान रघुनाथ की नगरी रघुनाथपुर में अन्नकूट उत्सव (Annakoot festival celebrated in Sultanpur) परंपरागत तरीके से मनाया गया. इस दौरान भगवान रघुनाथ अन्न के ढेर पर विराजमान हुए और श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भगवान रघुनाथ के मंदिर पहुंच कर उनका आशिर्वाद लिया. अन्नकूट त्योहार को गोवर्धन पूजा से भी जाना जाता है. पढ़ें पूरी खबर...

सुल्तानपुर में मनाया गया अन्नकूट पर्व
सुल्तानपुर में मनाया गया अन्नकूट पर्व

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Published : Oct 26, 2022, 4:57 PM IST

कुल्लू: भगवान रघुनाथ की नगरी रघुनाथपुर में अन्नकूट उत्सव परंपरागत तरीके से मनाया गया. इस दौरान भगवान रघुनाथ अन्न के ढेर पर विराजमान हुए और श्रद्धालुओं ने बड़ी संख्या में भगवान रघुनाथ के मंदिर पहुंच कर उनका आशिर्वाद लिया. अन्नकूट त्योहार को गोवर्धन पूजा से भी जाना जाता है. कुल्लू में इस दिन भगवान रघुनाथ को नए अनाज का भोग लगाया जाता है. इस मौके पर भगवान रघुनाथ का श्रृंगार करके चावल का पहाड़नुमा ढेर लगाकर उस पर उन्हें विराजमान करवाया जाता है.(Govardhan puja in kullu). (Govardhan puja 2022 )

माना जाता है कि जिस तरह से भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर गौवंश व ग्वालों की रक्षा की थी. उसी तरह कुल्लू में मनाए जाने वाले अन्नकूट त्योहार को भी गोवर्धन पूजा से जोड़ा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान रघुनाथ को नया अनाज चढ़ाए जाने से भगवान रघुनाथ फसलों की रक्षा करते हैं और अन्न की कमी न होने का आशिर्वाद देते हैं. अन्नकूट त्योहार हर वर्ष दिवाली के दूसरे या तीसरे दिन मनाया जाता है, जिसके लिए शास्त्र पद्धति के अनुसार दिन का चयन किया जाता है.(Annakoot festival celebrated in Sultanpur).

सुल्तानपुर में मनाया गया अन्नकूट पर्व.

भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने बताया कि कुल्लू घाटी में अन्नकूट और गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाती है. उन्होंने कहा कि अन्नकूट इस मौसम में उगाए गए नए चावल व दाल होती है. जिसे भगवान के चरणों में अर्पित किया जाता है. उन्होंने बताया कि गोवर्धन पूजा द्वापर युग से लेकर चली आ रही है. उन्होंने कहा कि जब से लेकर कुल्लू में रघुनाथ भगवान पदार्पण हुए हैं, तब से लेकर अन्नकूट का त्यौहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता है. लिहाजा कुल्लू के रघुनाथपुर में आज भी इस परंपरा का परंपरागत तरीके से निवर्हन किया जाता है.

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