कुल्लू: कोरोना महामारी जहां लोगों को डरा रही है. वहीं, जारी लॉकडाउन ने छोटे से लेकर बड़े व्यापारियों की कमर तोड़ दी है. खाली पड़े बाजार कुल्लू के बुनकरों को भी सता रहे हैं. हिमाचल का बुनकर उद्योग 90 प्रतिशत पर्यटकों पर निर्भर करता है. अकेले कुल्लू जिला में हर साल 10 करोड़ का कारोबार होता है. टूरिस्ट सीजन में देश-विदेशों से आने वाले पर्यटक बुनकर उद्योग की रीढ़ की हड्डी हैं. महज 42 दिन के लॉकडाउन में ही करीब 70 प्रतिशत कारोबार धुल गया है.
बुनकर कारीगरों पर लॉकडाउन की मार! पर्यटक न आने से सताने लगी रोजी-रोटी की चिंता
हिमाचल का बुनकर उद्योग 90 प्रतिशत पर्यटकों पर निर्भर करता है. अकेले कुल्लू जिला में हर साल 10 करोड़ का कारोबार होता है. टूरिस्ट सीजन में देश-विदेशों से आने वाले पर्यटक बुनकर उद्योग की रीढ़ की हड्डी हैं. महज 42 दिन के लॉकडाउन में ही करीब 70 प्रतिशत कारोबार धुल गया है.
रही सही कसर लॉकडाउन-3 ने पूरी कर दी है. बुनकरों को अब दो वक्त की रोटी की चिंता सताने लगी है. कुल्लू जिला के ग्रामीण इलाकों में हर घर में खड्डी है जहां बुनकर कुल्लवी शॉल और हिमाचली टोपी तैयार करते हैं. इस बार कोरोना की मार से कारीगर हताश हैं आखिर काम करें या नहीं. उत्पादों को जब बाजार नहीं मिलेगा तो काम करके भी क्या फायदा.
ऐसे में बुनकर उद्योग से संबंध रखने वाले लोग मुश्किल की इस घड़ी में प्रदेश सरकार से मदद की अपील कर रहे हैं. कुल्लवी शॉल और टोपी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बड़ी-बड़ी हस्तियां हिमाचली टोपी की मुरीद हैं. वहीं, प्रधानमंत्री मंच से भी कुल्लवी शॉल को बनाने वाले कारीगरों की तारीफ कर चुके हैं. ऐसे में प्रदेश सरकार को इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए वैश्विक महामारी के दौर में बुनकर कारीगरों को सहायता प्रदान करनी चाहिए.