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कुल्लू की कमला का कमाल, 'खड्डी' से आत्मनिर्भर बनने की पेश की मिसाल - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

कुल्लू की रहने वाली कमला ने आत्मनिर्भर बनने की एक मिसाल पेश की है. 60 साल की कमला खड्डी से बुनाई का काम करती है. उनका मानना है कि इसी के जरिए वह अपने परिवार का पालन-पोषण करती है.

handicraft work by old woman kamla
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Published : Jul 24, 2020, 10:09 PM IST

कुल्लू: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में देश को आत्मनिर्भर बनने का मंत्र दिया है, लेकिन जिला कुल्लू में एक महिला ऐसी है, जिसने होश संभालते ही आत्मनिर्भरता को अपने जीवन का मूल मंत्र बना दिया. कुल्लू की कमला ने अपनी जीवन के शुरुआती सालों में ही खड्डी को जीने का सहारा बना लिया. अब वह इसे से अपने परिवार का पालन-पोषण करती है.

बता दें कि कमला अब 60 साल की है. इनके परिवार का कोई भी सदस्य नौकरी नहीं करता. कमला ने होश संभालते ही खड्डी को जीने का सहारा बना लिया. धीरे-धीरे कमला का परिवार बढ़ता गया और इसके साथ उनकी जिम्मेवारियां भी बढ़ गई. कमला ने समाज में प्रतिष्ठिा के साथ जीवन यापन करने के लिए एक अच्छा सा मकान भी बनाना था.

कुल्लू-मनाली के मध्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नग्गर स्थित रॉरिक आर्ट गैलरी के साथ लगते शरण गांव की रहने वाली कमला का कहना है कि यह गांव सदियों से बुनकरों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है.यहां हर घर में खड्डी मिल जाएगी और गांव की लगभग सभी महिलाएं बुनाई का काम करने में पारंगत हैं. गांव के लोगों ने आज भी अपने पुरखों की परम्पराओं को जिंदा रखा है. गर्म वस्त्रों की बहुतायत में बुनाई का यह भी एक कारण है कि इलाके में सर्दियों में बहुत ठंड पड़ती है.

वीडियो रिपोर्ट.

कमला बताती है कि वह खड्डी पर बुनाई का कार्य नियमित तौर पर करती है. इसके साथ-साथ वह मवेशियों की देखभाल और अन्य घरलेू कार्यों को भी करती है. वह दोडू, पट्टू, स्टॉल और गर्म कपड़े के लिए पट्टी की बुनाई करती है. वह पूरे परिवार के लिए हर साल इसी खड्डी में गर्म कपड़े बनते हैं.

कमला ने बताया कि ऊनी दोडू जिला की महिलाओं का पारम्परिक परिधान है, जो सर्दी से बचाने के साथ-साथ बहुत खूबसूरत भी दिखता है. इसके लिए बहुत सारी पट्टी लगती है, जिसे बाजार से खरीदना उसके परिवार के लिए मुमकिन नहीं है.

कमला का कहना है कि नग्गर घाटी में हमारे देश के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी टूरिस्ट आते हैं और वह हाथ से बुनी हुई वस्तुओं को बहुत पंसद करते हैं. वह अपने उत्पादों को बेचकर अच्छा पैसा कमा लेती हैं. इसी खड्डी से कमला ने अब एक अच्छा सा घर भी बना लिया है.

वह नई पीढ़ी से बुनाई की इस परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है. कमला का कहना है कि नौकरी के लिए इधर-उधर भटकने से कहीं अच्छा है कि अपने घर में बैठकर बुनाई का काम करे. इससे अच्छी खासी कमाई हो जाती है. कमला बताती है कि उनके गांव को अब हैण्डलूम क्रॉफ्ट पर्यटन गांव के तौर पर विकसित करने के लिए देश के तीन गांवों में चुना गया है.

कमला का मानना है कि शरण गांव एक ऐतिहासिक गांव हैं, जहां 500 साल तक पुराने मकान अभी भी जस के तस हैं. पुरानी शैली के इन मकानों को देखने के लिए अनेकों सैलानी यहां आते हैं. कमला का कहना है कि शरण गांव बहुत जल्द सैलानियों के लिए सबसे पंसदीदा स्थल बनकर उभरेगा और गांव के लोग और अधिक सम्पन्न होंगे.

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