कुल्लू: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना काल में देश को आत्मनिर्भर बनने का मंत्र दिया है, लेकिन जिला कुल्लू में एक महिला ऐसी है, जिसने होश संभालते ही आत्मनिर्भरता को अपने जीवन का मूल मंत्र बना दिया. कुल्लू की कमला ने अपनी जीवन के शुरुआती सालों में ही खड्डी को जीने का सहारा बना लिया. अब वह इसे से अपने परिवार का पालन-पोषण करती है.
बता दें कि कमला अब 60 साल की है. इनके परिवार का कोई भी सदस्य नौकरी नहीं करता. कमला ने होश संभालते ही खड्डी को जीने का सहारा बना लिया. धीरे-धीरे कमला का परिवार बढ़ता गया और इसके साथ उनकी जिम्मेवारियां भी बढ़ गई. कमला ने समाज में प्रतिष्ठिा के साथ जीवन यापन करने के लिए एक अच्छा सा मकान भी बनाना था.
कुल्लू-मनाली के मध्य प्रसिद्ध पर्यटन स्थल नग्गर स्थित रॉरिक आर्ट गैलरी के साथ लगते शरण गांव की रहने वाली कमला का कहना है कि यह गांव सदियों से बुनकरों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है.यहां हर घर में खड्डी मिल जाएगी और गांव की लगभग सभी महिलाएं बुनाई का काम करने में पारंगत हैं. गांव के लोगों ने आज भी अपने पुरखों की परम्पराओं को जिंदा रखा है. गर्म वस्त्रों की बहुतायत में बुनाई का यह भी एक कारण है कि इलाके में सर्दियों में बहुत ठंड पड़ती है.
कमला बताती है कि वह खड्डी पर बुनाई का कार्य नियमित तौर पर करती है. इसके साथ-साथ वह मवेशियों की देखभाल और अन्य घरलेू कार्यों को भी करती है. वह दोडू, पट्टू, स्टॉल और गर्म कपड़े के लिए पट्टी की बुनाई करती है. वह पूरे परिवार के लिए हर साल इसी खड्डी में गर्म कपड़े बनते हैं.