कुल्लू:अयोध्या (Ayodhya) का देवभूमि कुल्लू से 369 साल पुराना अटूट रिश्ता रहा है. 1650 ई. में भगवान रघुनाथ को अयोध्या से देवभूमि कुल्लू लाया गया था.
हालांकि, भगवान रघुनाथ को ढालपुर में 1660 ई. में विराजमान किया गया था. इससे पहले रघुनाथ को सबसे पहले मकराहड़ और बाद में धार्मिक स्थल मणिकर्ण में भी रखा गया. इसी के चलते मणिकर्ण को राम की नगरी भी कहा जाता है और यहां एक भव्य राम मंदिर भी बनाया गया है. जिला कुल्लू में करीब 500 देवी-देवताओं के अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ का अयोध्या से गहरा नाता रहा है.
1650 ई. में कुल्लू के राजा जगत सिंह के आदेश पर भगवान रघुनाथ, सीता और हनुमान की मूर्तियों को अयोध्या से दामोदर दास ने लाया था. उस समय कुल्लू रियासत के राजा जगत सिंह ने अपनी राजधानी को नग्गर से स्थानांतरित कर सुल्तानपुर में स्थापित किया था. तब एक दिन राजा को किसी दरबारी ने सूचना दी कि मड़ोली (टिप्परी) के ब्राह्मण दुर्गा दत्त के पास मोती हैं. राजा ने उससे मोती मांगे, लेकिन उसके पास मोती नहीं थे. राजा के भय के कारण दुर्गा दत्त ने आत्मदाह कर लिया. इससे राजा को रोग लग गया.
ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए राजा जगत सिंह (Raja Jagat Singh) के राजगुरु तारानाथ ने राजा को सिद्धगुरु कृष्णदास पथहारी से मिलने को कहा. पथहारी बाबा ने उपाय सुझाया कि अगर अयोध्या से त्रेतानाथ मंदिर में अश्वमेध यज्ञ के समय की निर्मित राम-सीता की मूर्तियों को कुल्लू में प्रतिष्ठापित किया जाए, तो राजा रोग मुक्त हो सकता है.
पथहारी ने गुटका सिद्धि के ज्ञाता सुकेत में रह रहे अपने शिष्य दामोदर दास को अयोध्या में राम-सीता की मूर्तियों को लाने का काम सौंपा. दामोदर दास गुटका सिद्धि के प्रयोग से तत्काल अयोध्या पहुंचा. वहां पर त्रेतानाथ मंदिर में एक वर्ष तक पुजारियों की सेवा करते हुए पूजा विधि को समझता रहा.