किन्नौर : 25 अक्टूबर 1951, आजादी के 4 बरस बाद की उस सुबह देश एक नई इबारत लिखने जा रहा था. आजाद भारत में पहली बार चुनाव हो रहे थे और हिमाचल के छोटे से गांव का एक मास्टर भविष्य के सबसे बड़े लोकतंत्र की बुनियाद डालने के लिए निकल पड़ा था. भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है लेकिन उस लोकतंत्र का ब्रांड एबेंसडर वो शख्स है जिसने आजाद भारत का पहला वोट डालकर वो बुनियाद रखी जिसपर आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खड़ा है. उस सुबह को आज सात दशक से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आजाद भारत के पहले वोटर को लोकतंत्र के सूर्योदय का वो दिन आज भी याद है. आखिर वो कैसे बने देश के पहले वोटर ? इस बात की कब और कैसे हुई पुष्टि ? एक स्कूल मास्टर के लोकतंत्र का हीरो बनने के कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है. (Shyam Saran Negi)
105 बरस का हुआ देश का पहला मतदाता
देश के पहले मतदाता श्याम सरन नेगी आज 105 बरस के हो चुके हैं लेकिन उम्र के इस पड़ाव में भी वोटिंग को लेकर उनका जोश देखते ही बनता है. हिमाचल में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होने वाली है और नेगी कहते हैं कि सेहत ने साथ दिया तो इस बार भी वोट देंगे. चुनाव कोई भी हो श्याम सरन नेगी ने वोट जरूर दिया, लोकसभा से लेकर विधानसभा और पंचायत चुनाव तक नेगी कुल 33 बार मतदान कर चुके हैं. वोटिंग को लेकर उनकी भूख मिटी नहीं है लेकिन उम्र का तकाजा उन्हें हर बार ये कहने पर मजबूर कर देता है कि शायद मैं इस बार वोट ना दे पाऊं. (First Voter of India Shyam Saran Negi) (Himachal Election 2022)
वो पहला चुनाव और पहले वोट की यादें-श्याम सरन नेगी को अपना पहला वोट डाले 71 साल हो चुके हैं लेकिन उनको पहले चुनाव का वो वोट आज भी ऐसे याद है, मानो कल की बात हो. नेगी कहते हैं 'यहां भी 1952 में चुनाव होने थे लेकिन लोगों ने इस पर एतराज जताया कि यहां जनवरी, फरवरी, मार्च में बर्फबारी और कड़ाके की ठंड पड़ती है. ऐसे मौसम में कोई भी वोट नहीं दे पाएगा इसलिये किन्नौर को इससे अलग करो. जिसके बाद 1951 के अक्टूबर में चुनाव हुए'.
उस वक्त पेशे से स्कूल टीचर रहे श्याम सरन नेगी को 25 अक्टूबर 1951 का वो दिन अच्छी तरह याद है. उस दौरान उनकी चुनाव कराने की ड्यूटी किन्नौर के शौंगठोंग से लेकर नेसंग तक लगाई गई थी, जबकि उनका वोट कल्पा गांव में था. नेगी उस दिन को याद करते हुए बताते हैं 'मैंने कहा कि मुझे वोट देना है, प्रिसाइडिंग ऑफिसर ने कहा कि यहां कौन से 100 फीसदी वोट पड़ने वाला है. यहां 25, 30 पर्सेंट से ज्यादा मतदान नहीं होगा. मेरी चुनाव ड्यूटी कहीं और लगी थी, दिन में वहां काम करते हुए शाम को ख्याल आया कि मुझे वोट देना है. फिर शाम को मैं घर आया और अगली सुबह 6 बजे वोट डालने पहुंच गया. तब तक चुनाव करवाने वाली पार्टी तक नहीं पहुंची थी'.
मतदान को लेकर श्याम सरन नेगी में पहले से ही जुनून था, नेगी ने अपने चुनाव अधिकारी को बताया कि मैं वोट डालना चाहता हूं और सुबह वक्त पर वापस चुनाव की ड्यूटी पर लौट आऊंगा. अनुमति मिलते ही नेगी वोटिंग से एक दिन पहले अपने घर कल्पा पहुंचे और अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मतदान केंद्र वोट डालने पहुंच गए. चुनाव की ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों के पहुंचने पर नेगी ने बताया कि उन्हें चुनाव ड्यूटी के लिए जाना है इसलिये उन्हें जल्दी वोटिंग करने दें. चुनाव ड्यूटी में तैनात कर्मचारियों ने पूरा सहयोग करते हुए निर्धारित समय से कुछ पहले नेगी को वोट डालने दिया. उस वक्त श्याम सरन नेगी की उम्र 31 साल थी, उन्हें क्या पता था कि वोट डालने की जल्दबाजी में वो एक ऐसा इतिहास लिख रहे हैं जिसमें उनका नाम हमेशा के लिए अमर हो जाएगा.
25 अक्टूबर को अपना वोट डालकर नेगी अपनी चुनाव ड्यूटी पर भी वक्त पर पहुंच गए. इसके बाद नेगी ने शौंगठोंग से नेसंग तक 10 दिन तक मतदान में ड्यूटी दी थी. दिन में वोटिंग और शाम को बैलेट बॉक्स को सुरक्षित कैंप तक ले आते थे. बताते हैं कि उस दौर में टीन के कनस्तर का बैलेट बॉक्स बनाया गया था. नेगी और उनके परिवार के सदस्य ये तो जानते थे कि उन्होंने तय वक्त से पहले मतदान किया है लेकिन वो आजाद भारत के पहले मतदाता होंगे, ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा था. (Independent indias first voter)
56 साल दुनिया के सामने आई सच्चाई-श्याम सरन नेगी ने 1951 में आजाद भारत का पहला वोट डाला था लेकिन अगले कई दशकों तक नेगी के साथ-साथ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इस बात से अनजान था. नेगी को आजाद भारत के पहले मतदाता के रूप में पहचान मिलने की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है. हिमाचल के वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार शर्मा बताते हैं कि जुलाई 2007 में हिमाचल प्रदेश की तत्कालीन मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनीषा नंदा ने सबसे पहले इस दिशा में तथ्यों को खंगाला था. उनकी बदौलत ही श्याम सरन नेगी को एक नई पहचान मिली.