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शान-ए-हिमाचल है किन्नौरी परिधान, 40 किलो की पारंपरिक वेशभूषा से होता है दुल्हन का श्रृंगार

जब भी हम जिला किन्नौर का नाम सुनते हैं तो सबसे पहले हमारे जहन में बर्फ से ढके ऊंचे-ऊंचे पहाड़, खूबसूरत नजारे और किन्नौरी सेब और पारंपरिक किन्नौरी वेशभूषा की तस्वीर आती है. पारंपरिक वेशभूषा में सजी दुल्हन का परिधान न केवल भारतीयों बल्कि विदेशियों का ध्यान भी आकर्षित करता है.

शान-ए-हिमाचल है किन्नौरी परिधान (डिजाइन फोटो).

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Published : Oct 15, 2019, 5:35 PM IST

Updated : Oct 17, 2019, 3:07 PM IST

किन्नौरः जिला किन्नौर का परिधान अन्य जगहों से अलग होने के कारण विश्वभर में प्रसिद्ध है. फिर चाहे किन्नौरी टोपी हो, किन्नौरी शॉल या किन्नौरी सदरी, हरकोई किन्नौरी वेशभूषा को देख आकर्षित हो जाता है. किन्नौर में शादी के समय निभाए जाने वाले रीति-रिवाज भी अन्य जगहों से काफी अलग होते. किन्नौरी दुल्हन का श्रृंगार कम से कम 40 से 50 किलोग्राम की वेशभूषा से होता है.

शान-ए-हिमाचल है किन्नौरी परिधान (वीडियो).

सियासत की टोपी, किन्नौरी टोपी
यूं तो हिमाचल में कई टोपियां प्रसिद्ध हैं और इन टोपियों को राजनीतिक दलों की पहचान माना जाता है. कहा जाता है कि हरे रंग की टोपी कांग्रेस की और लाल रंग की टोपी बीजेपी की पहचान है. इसलिए कांग्रेस और बीजेपी के प्रशंसक व कार्यकर्ता इन्हीं आधार पर टोपियां पहनते हैं. किन्नौरी परिधान में किन्नौरी टोपी की एक अलग पहचान है. ये टोपी प्रदेश की मान-मर्यादा से जुड़ी हुई है. बाहर से आने वाले हर मेहमान का सम्मान टोपी पहनाकर ही किया जाता है. हिमाचल टोपी पहाड़ी राज्य में हजारों लोगों के लिए आजीविका का एक बड़ा स्रोत हैं.

किन्नौरी शॉल
किन्नौरी शॉल जटिल और सुंदर डिजाइनों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. इस शॉल की बुनाई में बहुत विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है. इनके रंग और डिजाइन विशेष धार्मिक महत्व और पौराणिक पृष्ठभूमि रखते हैं. पांच रंग आमतौर पर एक किन्नौरी शॉल में उपयोग किए जाते हैं. सफेद रंग पानी का संकेत देता है, पृथ्वी के लिए पीला है, आग के लिए लाल, हवा के लिए हरा और ईथर के लिए नीला. इसके अलावा, इन रंगों का गहरा पवित्र महत्व है. लाल आध्यात्मिक शक्ति के लिए खड़ा है, पारलौकिक ज्ञान के लिए नीला और पीला का अर्थ उदात्त सत्य है. जैसा कि पहाड़ों में कहते हैं कि हर किन्नौरी शॉल एक प्रार्थना है.

मुख्य परिधान
किन्नौर की पारंपरिक वेशभूषा में दोरी, चोली, पट्टू, शॉल, मफलर, गाछनग और किन्नौरी टोपी मुख्य वस्त्र है. जिन्हें खास मौकों पर पहना जाता है. इन वस्त्रों को बनाने में काफी मेहनत लगती है. वस्त्र बुनाई का काम बेहद बारीकी से किया जाता है. किन्नौर की पारम्परिक परिधान (वेशभूषा) की मांग पूरे विश्व में है. किन्नौरी वेशभूषा के कई वस्त्रों का दाम सोने के दाम से भी अधिक बताया जाता है. इस वेशभूषा को देखने और खरीदने देश-विदेश से पर्यटक आते हैं.

किन्नौरी हिलाओं का परिधान
जनजातीय जिला किन्नौर की महिलाओं का परंपरागत परिधान और गहनों से किया गया श्रृंगार किसी को भी आकर्षित करने में सक्षम है. सिर से पांव तक गहनों से लदी इन महिलाओं का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है, की बनावट गोलाकार चपटी होती है. माथे पर ही बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का पट्टा जिसे तोनोल कहा जाता है. इस पट्टे से पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.

सोने को किन्नौरी बोली में जड़ और चांदी को मूल कहा जाता है. गले में लाल व हरे पत्थर के मिश्रण से बनी माला पहनी जाती है जिसे तिंग शुलिक कहा जाता है. हाथ में चूड़ियों के साथ सोने और चांदी के कड़े पहने जाते हैं. सोने के कड़े को सुनंगो और चांदी के कड़े को धागलो कहा जाता है. इसमें दोनों हाथों के कड़ों का भार कम से कम 40 तोला तो रहता ही है. पैरों की अंगुलियों में चांदी का गहना पहना जाता है जिसे बांगपोल कहा जाता है.

सम्पूर्ण वेशभूषा का वजन
किन्नौर के इन पारम्परिक वेशभूषाओं में महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा वस्त्रों का प्रयोग होता है और जब विवाह या कोई मेला होता है तो पारंपरिक वेशभूषा को पहनकर आना पड़ता है. खास मौकों पर जब सभी वस्त्रों को पहना जाता है तो इन ऊनी वस्त्रों का वजन करीब चालीस से पचास किलो भी हो जाता है.

Last Updated : Oct 17, 2019, 3:07 PM IST

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