किन्नौर: जिला किन्नौर के अधिकतर क्षेत्र अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी पाई जाती है, लेकिन सांगला घाटी में रेतीले जमीनी पाई जाती है. सांगला पर्यटन के लिए पूरे विश्वभर में जाना जाता है. सांगला गांव का इतिहास काफी पुराना है. सांगला घाटी को बसाने में यहां के स्थानीय देवता बैरिंग नाग की अहम भूमिका बताई जाती है.
देवता बैरिंग नाग ने किया था प्रवास
सांगला के ग्रामीणों के मुताबिक सांगला घाटी बहुत समय पहले एक बहुत बड़ा तालाब हुआ करती थी. तालाब के आस-पास जाना मुमकिन नहीं था. इस तालाब के ऊपरी तरफ केवल कामरू गांव का किला व कुछ घर थे. स्थानीय लोगों के मुताबिक सातवीं शाताब्दी की शुरूआत में देवता बैरिंग नाग सांगला आए और कुछ समय के लिए यहीं पर प्रवास किया.
बैरिंग नाग ने बसाया था सांगला गांव
बेरिंग नाग को शेष नाग का रूप भी माना जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बैरिंग नाग ने अपना रूप बदलकर सांगला में बनी झील के चारों तरफ छेद कर इसे तोड़ दिया. इससे झील का सारा पानी बह कर सतलुज में मिल गया. झील में जमा पानी अपने साथ मिट्टी भी बहाकर ले गया. मिट्टी के बह जाने से सांगला में सिर्फ रेत बच गई थी.
रेत पर उगाते हैं नगदी फसलें
सांगला में रेतीली जमीन होने के बाद भी यहां अच्छी गुणवता की नकदी फसलें होती हैं. लोग यहां सेब,ओगला,फाफड़ा, राजमाह, आलू, मटर व कई प्रकार की सब्जियां भी उगाते हैं. लोग रेतीली जमीन पर ही फसलें उगाकर अपना जीवन यापन करते हैं.