किन्नौर: जिले के रक्छम गांव ने प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देशभर में अपना नाम रोशन किया है. रक्छम गांव प्रकृति के गोद में बसा एक बहुत ही सुंदर गांव है. इस गांव की पहाड़ियां 12 महीने बर्फ की चादर से ढकी रहती हैं. देश विदेश से पर्यटक और शोधकर्ता यहां की भौगोलिक परिस्थितियों से अवगत होने के लिए आते हैं.
अग्निकांड के बाद फिर से बसा रक्छम
रक्छम गांव में साल 2002 से पहले लकड़ी से बने पुशतैनी मकान हुआ करते थे, लेकिन 2002 के भीषण अग्निकांड में पूरा गांव जलकर राख हो गया. इस अग्निकांड में लोगों की करोड़ों की संपत्ति, जेवरात और पुश्तैनी चीजें जलकर राख हो गई थी. रक्छम के लोगों ने एक बार दोबारा गांव को बसाने के लिए महीनों तक एक दूसरे के साथ मिलकर काम किया. लोगों ने मेहनत के बल पर पूरे गांव को करीब डेढ़ से दो साल में दोबारा बसा दिया.
खुले में प्लास्टिक फेंकने पर है प्रतिबंध
इसके अलावा गांव मे प्लास्टिक से बनी चीजों को खुले में फेंकने पर प्रतिबंध है. गांव के बाहरी इलाकों से आए व्यापारियों को व्यापार करने की अनुमति नहीं है. गांव के अंदर सामान बेचने के लिए पहले गांव के पंचायत प्रधान से अनुमति लेना आवश्यक है. गांव में खुले में शौच करने पर भी प्रतिबंध है. गांव में गंदगी फैलाने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है. गांव में सफाई को ध्यान में रखते हुए जगह-जगह कूड़ेदान लगाए गए हैं. इस गांव की किसी भी गली में कूड़े का नामोनिशान नहीं मिलेगा. गांव में चंडीगढ़ की तर्ज पर सूचना बोर्ड लगाए गए हैं, ताकि कोई भी पर्यटक क्षेत्र में घूमने के दौरान इधर-उधर भटक न जाएं.