किन्नौर: ईटीवी भारत की सीरीज 'रहस्य' में आज हम अपनी कड़ी की तीसरी कहानी लेकर हाजिर हैं. आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के दुर-दराज जिला किन्नौर की नाके झील के बारे में बताएंगे. जिला के हंगरांग वैली के नाको गांव में स्थित नाको झील जितनी खूबसूरत है उतना ही अपनी गहराई में कई रहस्य छुपाए हुए है.
नाको गांव समुद्र तल से 3,661 मीटर की ऊंचाई पर जो कि भारत-चीन सीमा पर स्थित है. यहां हर साल हजारों पर्यटक घूमने पहुंचते हैं. इस गांव की सुंदरता देखते ही बनती है. गांव के बीचों-बीच एक प्राकृतिक झील है जो इस गांव की सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती है.
ये झील अपने अंदर कई रहस्य भी समाए हुए है. बुजुर्गों का कहना है कि ये झील प्राकृतिक है और इसका निर्माण हजारों साल पहले हुआ था.
गुरु पद्म संभव व देवता पुर्ग्युल से जुड़ा है झील का इतिहास
इस झील का इतिहास हजारों साल पहले गुरु पद्म संभव से जुड़ा हुआ है. गुरु पद्म संभव जो नालंदा विश्वविद्यालय में तांत्रिक विद्या के अध्यापन का कार्य करते थे, जब नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगी तो पद्म संभव ने आग की लपटों से कुछ एक बोद्ध धर्म की बची हुई पुस्तकों को वहां से सही सलामत निकाला था.
बताते चलें कि पद्म संभव तांत्रिक विद्या में निपुण थे और बोद्ध धर्म की पुस्तकों के कुछ अस्तित्व उन्होंने बचा लिए थे. कहा जाता है कि जब पद्म संभव के बारे में तिब्बत के राजा ठी को पता चला तो उन्होंने उनको तिब्बत बुलाया, क्योंकि उस दौरान तिब्बत में भूत प्रेतों का आतंक काफी बढ़ गया था.
जब पद्म संभव को यह बात पता चली तो वे बोद्ध पुस्तकों को लेकर वायु वेग से किन्नौर आये और नाको के समीप अपनी थकावट मिटाने के लिए रुके और कुछ देर अपने ध्यान में लगे रहे. जब उनकी आंख खुली तो गांव के मध्य अचानक एक झील का निर्माण हो चुका था.