किन्नौर:देव भूमि कन्नौर के विशाल गांव मूरंग व स्थानीय बोली में गिनम में स्थित मठ संगछेन थरपा छोलिंग से शुरू हुआ. दोङग छोलिंग विहार मे पछले कई दशकों से महाकाल देव की पूजा भूमि अभिषेक के माध्यम से किया जा रहा है. करीब चार दिन से साधना के बाद अंतिम दिन इष्ट देव-देवता ओर्मिक शु के विराजमान एवं लामा जोमो संघ के उपस्थिति में ग्रामवासी व श्रद्धालूगण धर्मपालो के तांडव और डाकि- डाकनयों के नृत्य दर्शन कर सम्पन्न किये गए हैं. (Mahakal worship for world peace) (Mahakal worship in Murang)
बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध गुरु छोइगेंन रिनपोछे ने बताया कि डूबछोद महापर्व की 50वीं स्वर्ण जयंती पर मुरंग गांव में डूबा यानी महाकाल की पूजा को लेकर है. उन्होंने कहा कि अतित से देखा जाए, तो यह एक इतिहास है कि महाकाल, महादेव या धर्मपाल कहे उन्होंने हिंदुस्तान व विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालय जिसमे नालंदा, तकशीला व कई बड़े पौराणिक विश्वविद्यालय रहे हैं, जिनकी रक्षा महादेव के रूपी महाकाल ने की थी, जिसे बौद्ध धर्म मे बहुत बड़े शक्तिशाली सिद्ध पुरुष भी माना जाता है, जिन्हे रक्षक का रूप भी माना जाता है. इस महापर्व को विश्व शांति के रूप में भी मनाया जाता है, क्योंकि बौद्ध धर्म शांति का प्रतीक है.