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किन्नौर के 'जख्मों' की दास्तां...जर्रे-जर्रे पर तबाही का मंजर...भारत को रोशन कर अंधेरी हो गई ये गलियां - distruction in kinnaur

हिमालय की गोद में बसा किन्नौर वैसे तो टूरिज्म हब, अपार प्राकृतिक सौंदर्य, अद्भुद संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है, लेकिन आप ये जानकर हैरान होंगे कि यहां पर विकास के नाम पर कदम-कदम पर तबाही का मंजर है. किन्नौर के चीरहरण की पटकथा नदियों पर बिना सोचे समझे बनाए जा रहे पावर प्रोजेक्ट्स के जरिए लिखी जा रही है.

किन्नौर में विद्युत परियोजनाओं ने मचाई तबाही (डिजाइन फोटो).

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Published : Oct 17, 2019, 2:46 PM IST

किन्नौर: खड़ी पहाड़ियों पर बसे किन्नौर को विद्युत परियोजनाओं ने पैसा कमाने के लालच में खोखला कर दिया है. पावर प्रोजेक्टस के लिए अंधाधुंध ब्लास्टिंग, टनल का निर्माण करने के लिए पहाड़ों का सीना छलनी किया जा रहा है. पावर प्रोजेक्ट कंपनियों के लालच ने किन्नौर के खूबसूरत पहाड़ों को अनगिनत जख्म दिए हैं.

किन्नौर में विद्युत परियोजनाओं ने मचाई तबाही (वीडियो).

ब्लास्ंटिंग के धमाकों की गूंज से स्थानीय लोगों के आशियाने उजड़ गए. लोगों को मजबूरन घर छोड़कर भागना पड़ा. कंपनियों ने कई गांवों में तबाही मचा दी. किन्नौर की नदी-नालों को मोड़कर परियोजनाओं ने अपने बिजली उत्पादन करने के लिए लोगों के घर उजाड़ दिए. अंधाधुद ब्लास्टिंग के बाद किन्नौर के वातावरण में भी बदलाव आया है. पहाड़ियों पर बेमौसम, बर्फबारी, बारिश और मौसम का अचानक गर्म होना परेशानी का सबब बन गया है.

एक दौर था जब किन्नौर अपने अच्छे वातावरण के लिए जाना जाता था, लेकिन अब हालात काफी हद तक बिगड़ गए हैं. किन्नौर में दर्जनों जलविद्युत परियोजनाओं की वजह से जगह-जगह सुरंग बनाकर सतलुज के जल व अन्य सहायक नदियों के जल का प्रवाह मोड़कर प्रकृति से खिलवाड़ किया गया. निर्माणाधीन परियोजनाओं से दिन-रात बारूद के ब्लास्टिंग धमाके किए गए. इससे किन्नौर की पहाड़ियां कांपने लगी, फिर क्या था प्रकृति ने भी कई बार परियोजनाओं को अपने तरीके से संकेत दिए, लेकिन सभी परियोजना कंपनियों को सरकार के साथ-साथ प्रकृति का भी कोई डर नहीं रहा और पहाड़ों पर धमाके कर अपने काम पर लगे रहे.

किन्नौर में नाथपा झाकड़ी जलविद्युत परियोजना1500 मेगावाट, शोंगठोंग-करछम परियोजना 450 मेगावाट, बास्पा विद्युत परियोजना 300 मेगावाट, करछम वांगतू परियोजना 1000 मेगावाट, एसजेवीएन 120 मेगावाट, जंगी थोपन 780 मेगावाट, चांगो यनगथंग परियोजना 180 मेगावाट, काशन स्टेज वन 65 मेगावाट, काशङ्ग स्टेज टू और थ्री 130 मेगावाट, जैसी कई और भी छोटी परियोजनाएं है. इन परियोजनाओं ने किन्नौर में बिजली उत्पादन के नाम पर नदी-नालों को मोड़कर पर्यावरण व प्रकति को चुनौती दी.

परियोजनाओं में कार्य के दौरान प्रभावित पंचायतों की भी एक नहीं सुनी गई. अपने लालच में कंपनियों ने कई गांव को अर्श से फर्श पर उतार दिया. पनगी गांव में काशङ्ग परियोजना के निर्माणाधीन कार्य के समय करीब 500 घरों में दरारें आ गई थी और कुछ घर खिसककर सड़क पर उतर गए थे. जिसके चलते मकानों को खाली करवाना पड़ा था. ऐसे ही सांगला, निचार, कनाई, नाथपा, कंडार, चगाव, उरणी, मिरु, जैसे अन्य क्षेत्रों में भी परियाजनाओं के निर्माणधीन कार्य के दौरान की गई ब्लास्टिंग के दौरान मकानों के हिलने से स्थानीय लोगों को अपने आशियाने खाली करवाने पड़े.

स्थानीय लोगों का कहना है कि किन्नौर में विद्युत परियोजनाएं स्थापित होने के बाद किन्नौर के वातावरण में बदलाव आया है. सेब की फसल से लेकर अन्य फसलें भी अब उतनी उपजाऊ नहीं रही. गांव के चश्मों के जलस्त्रोत सूख गए और सुखा पड़ने लगा. गांव के बीच पहाड़ियां खिसकने लगी और जिला में बेमौसम बारिश ने किसानों और बागवानों की मुश्किलें बढ़ा दी. लोगों का कहना है कि परियोजनाओं ने किन्नौर में विकास के नाम पर विनाश किया है और कंपनियों ने अपने काम के लिए यहां के भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाकर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ किया है.

बचे-खुचे इलाकों की खूबसूरती को एनएच वाइंडिंग के कार्य के दौरान एनएच विभाग के बारूद के धमाकों द्वारा खत्म किया जा रहा है. किन्नौर में बीते कई वर्षों से एनएच के चौड़ीकरण के दौरान ठेकेदारों व विभागों द्वारा अंधाधुंध ब्लास्टिंग की जा रही है, जिससे किन्नौर की धरती हिल चुकी है और बीते दो वर्षों में कई ग्रामीण क्षेत्र सड़कों पर उतर गए हैं. किसी का आशियाना उजड़ गया तो किसी के खेत धंस गए. किन्नौर से काजा को जोड़ने वाले एनएच पांच पर बेहिसाब तबाही मचाई जा रही है, जिससे कई गांव खाली भी करने पड़े हैं. किन्नौर में परियोजनाओं और वाइंडिंग के कार्य ने किन्नौर के लोगों में खौफ पैदा कर दिया है.

बता दें कि किन्नौर में जलविद्युत परियोजनाओं का कार्य शुरू होने के बाद से सतलुज के पानी को किन्नौर में सोने का पानी और सतलुज को सोना उगलने वाली नदी भी माना जाता है. लोगों का कहना है कि सोने की इस सतलुज नदी को जगह-जगह टनल बनाकर नदी के कई हिस्से खाली हो गए हैं, जिससे सतलुज के आसपास के क्षेत्रों के साथ नदियों के कई जीव जंतु भी खत्म हो गए हैं और किन्नौर की परियोजनाओं को काला ग्रहण लग गया है.

परियोजनाओं ने इतने कार्य के बाद भी किन्नौर के विकास के लिए स्थानीय विकास कमेटी लोकल एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी में भी समय पर पैसा जमा नहीं किया है, जिस वजह से किन्नौर के कई ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक परियोजनाओं द्वारा किये गए निर्माण कार्य के दौरान मकानों व लोगों की उपजाऊ भूमि में दरारें आई हैं. कई जगह ब्लास्टिंग से धरती का हिस्सा टूटकर एनएच पर गिरा, तो कहीं सतलुज के निकासी गलत जगह से करने पर एनएच के आसपास भूमि रिसाव से करोड़ों का नुकसान हुआ. इसके बाद भी परियोजनाओं पर प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन नकेल नहीं कस सकी है. आज किन्नौरवासी परियोजनाओं से प्रभावित होने के कारण परेशानियों से गुजर रहे है और बहुत से लोग बेघर हो गए हैं.

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