किन्नौर: हिमाचल अपनी संस्कृति, खान-पान व रहन-सहन के लिए देशभर में जाना जाता है. यहां के खाद्य प्रदार्थ और पारंपरिक पोशाक लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. आज हम आपको किन्नौरी शराब की कुछ किस्में, गुण और इसके महत्व से आपको रूबरू करवाते है. शराब को किन्नौरी बोली में राक, आराक, फासुर कहते हैं. इसके अलावा हर क्षेत्र में अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है, लेकिन मूलतः इन तीन शब्दों का प्रयोग अधिक किया जाता है.
किन्नौर में शराब को शादी समारोह, पूजा-पाठ और औषधीय रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. सदियों पुरानी शराब की प्रथा नशे को न्योता नहीं देती, बल्कि किन्नौर की संस्कृति और यहां की सभ्यता को दर्शाती है. ये शराब काफी पवित्र मानी जाती है. कहा जाता है कि जिस बर्तन में इसे रखा जाता है. उसे परिवार के सभी सदस्य छू नहीं सकते. सिर्फ एक ही शख्स शराब को दूसरे बर्तन में निकालकर देता है.
किन्नौर की प्राकृतिक तरीके से निकाली गई शराब की पहचान करना काफी आसान है. शराब की गुणवत्ता चेक करने का बहुत ही आसान तरीका है. 10 या 20 रुपये के नोट को शराब में भिगोकर जला दिया जाए तो नोट में लगी शराब जल जाएगी, लेकिन नोट वैसे की वैसे ही रहेगी. किन्नौरी शराब को यहां की संस्कृति का अहम हिस्सा माना जाता है. यहां के बड़े बुजुर्गों को यह भी मानना है कि बच्चों को सर्दी, खांसी या पेट दर्द हो तो इस शराब के सेवन से उन्हें फायदा मिलता है.
किन्नौर में शराब की उत्पत्ति सैकड़ों साल पहले जिले के बुजुर्गों ने की थी. जिसका इतिहास काफी बड़ा है. जिला किन्नौर के कल्पा, निचार व पूह इलाके में अलग-अलग किस्म की शराब ग्रामीण निकालते है. कल्पा क्षेत्र व निचार क्षेत्र में अधिकतर लोग चुल्ली, सेब, नाशपती, काले व सफेद अंगूर के शराब निकालते हैं. वहीं, पूह क्षेत्र में मीठी खुबानी, चुल्ली व मुख्य रूप से जौ के शराब का अधिक महत्व है.