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किन्नौर के बागवान का कमाल, 15 सेब के पेड़ों से हर साल कमा रहा लाखों रुपये - किन्नौर में बागवान कर रहा जैविक खेती

किन्नौर के एक बागवान ने 15 बिस्वा जमीन पर लगे 15 सेब के पेड़ों से हर साल डेढ़ से दो लाख के सेब की फसल निकालकर एक मिसाल पेश की है. वह अन्य बागवानों को भी जैविक खेती करने के गुर सिखा रहे हैं.

Gardener earning millions of rupees from 15 apple trees
15 सेब के पेड़ों से हर साल कमा रहे लाखों रुपये

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Published : May 30, 2020, 6:19 PM IST

किन्नौर: जनजातीय जिला किन्नौर में एक बागवान अपने घर के आंगन में मात्र 15 सेब के पेड़ों से अच्छी आमदनी कमा रहा है. बागवान श्रीराम नेगी आज जिला के सैकड़ों लोग को जैविक खेती और कम भूमि में अधिक आय कमाने और सेब के खेतों में काम करने के असल तरीके सीखा रहे हैं.

श्रीराम नेगी कल्पा के निवासी हैं. इन्होंने हिमाचल विश्वविद्यालय से मनोवैज्ञानिक में एम.फिल तक की पढ़ाई की है. वहीं श्रीराम ने चंडीगढ़ से हॉर्टिकल्चर में पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा भी कर रखा है. जिसके बाद वह बागवानी की तरफ अग्रसर हुए. हालांकि इनके पास जमीन नाममात्र थी. जिसमे या तो सब्जी बीज सकते थे या फिर सेब की बागवानी कर सकते थे. ऐसे में उन्होंने सेब की बागवानी को चुना.

वीडियो रिपोर्ट

श्रीराम नेगी ने जैविक खेती की मेहनत से सेब के पौधे तैयार किया. पहली फसल में उन्होंने अपने सेब के बगीचे से 200 गिफ्ट पैक सेब मार्किट में बेचा था. जिसमे उन्हें करीब 62 हजार की आमदनी मिली थी. उसके बाद हर साल श्रीराम नेगी ने अपने छोटे से बाग से डेढ़ से दो सौ पेटी सेब की फसल तैयार की.

बता दें कि श्रीराम पहले ऐसे सेब बागवान है, जिन्होंने बिना किसी रासायनिक खाद और रासायनिक छिड़काव के सेब की फसल तैयार की. लोग आज 5 बीघे में कई बार मुश्किल से 2 सौ पेटी सेब की फसल तैयार करते हैं. वहीं, श्रीराम नेगी ने 15 बिस्वां जमीन में जैविक खेती का बेहतरीन उदाहरण है. जिसमे उन्होंने बड़े बागवानों को जैविक खेती से छोटे भूमि में बड़ी आय कमाने का तरीका सीखा दिया है.

श्रीराम ने जैविक खेती के माध्यम से हर साल डेढ़ से दो लाख के सेब की फसल निकालकर पूरे कल्पा और किन्नौर में मिसाल पेश की है. उन्होंने कहा कि वह सेब के बगीचे में रासायनिक खाद और छिड़काव का बिल्कुल परहेज करते हैं. श्रीराम ने कहा कि वह अपनी फसलों के लिए पशु के गोबर, गऊ मूत्र का प्रयोग करते हैं. उन्हें पशुधन पर अधिक विश्वास है और वह पारम्परिक बागवानी को अपना रहे हैं.

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