किन्नौर:जिला किन्नौर अपने सबसे अलग प्राकृतिक चीजों के लिए पूरे देशभर में जाना जाता है, लेकिन आज यहां आधुनिकता और विकास कार्यों के चलते जिले की कई दुर्लभ चीजें हमसे दूर होती नजर आ रही हैं. दरअसल जिले किन्नौर में चिलगोजा नाम का फल पाया जाता है. सेब के बाद यहां चिलगोजा ही किन्नौर वासियों की आमदनी का जरिया है. इन दिनों जिले में जलविद्युत परियोजनाओं के चलते हजारों की संख्या में पेड़ों का कटान हो रहा है. इसकी वजह से चिलगोजे की ये प्रजाति अब विलुप्त होने की कगार पर है.
चिलगोजा भारतवर्ष के कुछेक हिस्सों में ही पाया जाता है. भारतीय बाजार में इसकी कीमत 2 से 3 हजार रुपए प्रतिकिलो है. वहीं, अब इसके कटान से किन्नौर वासियों की परेशानी बढ़ गई है. वे सरकार और प्रशासन से इनके कटान को रोकने की मांग कर रहे हैं.
चिलगोजे का पेड़ सदाबहार होता है जो 12 महीने हराभरा रहता है. इस पेड़ में इस वर्ष की फसल लगने के साथ साथ अगले वर्ष की फसल भी इसी वर्ष पेड़ में तैयार हो जाती है जो इस प्राकृतिक पेड़ की खासियत है. चिलगोजे की फसल को तैयार होने में करीब 7 महीने लग जाते हैं जिसके बाद इस फसल को पेड़ों से निकालने के लिए स्पेशल मजदूरों को लाया जाता है जिन्हें चिलगोजे के पेड़ से फसल को तोड़ने का अनुभव हो. दरअसल इस वर्ष की फसल के साथ दूसरे वर्ष की फसल भी लगी होती है जिसे नुकसान न हो, इसलिए अनुभवी मजदूर ही इसकी फसल को तोड़ते हैं.
जब चिलगोजे की फसल पेड़ों पर लगती है तो समूचा क्षेत्र हराभरा और इस पेड़ की वजह से पूरे क्षेत्र का नजारा देखने लायक होता है. इस पेड़ से निकला चिलगोजा बहुत ही गुणकारी होता है जिसे जिला किन्नौर में बर्फबारी के दौरान अपने शरीर को गर्म रखने के लिए आग पर भुनकर भी खाया जाता है. यही नहीं चिलगोजे से निकला तेल भी बहुत ही गुणकारी माना जाता है और चिलगोजे के गिरी को पीसकर नमकीन चाय और चटनी आदि में भी प्रयोग किया जाता है. चिलगोजे का पेड़ एक ऐसा पेड़ है जिसकी लकड़ी, फसल और इससे निकलने वाला चिपचिपा गोंद भी आयुर्वेद चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है.