बौद्ध मंत्रों की नक्काशी. किन्नौर:जिले के मलिंग व नाको गांव में बौद्ध धर्म में प्रार्थना पत्थर यानी 'माने' या 'माधंग' महत्वपूर्ण धार्मिक उद्देश्यों का संकेत होते हैं, उन्हें पत्थरों पर उकेरा जा रहा है. बौद्ध इन प्रार्थना पत्थरों को न केवल अपने लिए बल्कि सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए बनाते हैं. इन पवित्र पत्थर जिसमें बौद्ध मंत्रों को उकेरा जा रहा है, इन्हे गांव के मध्य या गांव के आस पास बहुत से ऐसे 'माधंग' यानी पथरों पर की हुई मंत्रों की नक्काशियों का ढेर देखा जा सकता है. जोकि मलिंग व नाको गांव के बुजुर्गों के द्वारा किसी समय में कुरेदा गया था. (Stone carving in Kinnaur) (Buddhist Stone Carving Culture) (Tibetan Buddhist Rock Art)
क्या है ग्रामीणों की मान्यता- मलिंग व नाको के ग्रामीणों की मान्यता है कि ये पत्थरों का ढेर गांव की सुख शांति और गांव को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए पहले किसी पीढ़ी के द्वारा बनाया गया था. नाको व मलिंग गांव के लोग इस विषय को गंभीर मानने के साथ-साथ भूतकाल में किए गलतियों को सुधारने और इनका सरंक्षण करने में जुटी है. आज गांव के लोग जिसमें केवल बुजुर्ग ही नहीं बल्कि युवा पीढ़ी भी फिर से इस प्रथा को शुरू कर गांव की मान्यता और इतिहास को दोहरा रहे हैं. सभी लोग मिलकर दूर-दूर से पत्थरों को एकत्रित कर इनमें बौद्ध मंत्रों को कुरेदकर लिख रहे हैं जोकि सच में इन ग्रामीणों के लिए हर्ष का विषय है. (Buddhist mantras carved on stone)
किन्नौर के नाको व मलिंग गांव में पत्थरों पर बौद्ध मंत्रों की नक्काशी करते हुए लोग. नक्काशी परंपरा का गहरा इतिहास-बौद्ध धर्म में पत्थरों में की जाने वाली नक्काशी की परंपरा और इसके पीछे की मान्यताओं में गहरा इतिहास है. उदाहरण के लिए पत्थर की नक्काशी का सबसे आम प्रकार मणि पत्थर है. इन पत्थरों को मणि पत्थर या माने कहा जाता है. जबकि इन पत्थरों के समूह को 'माधंग' कहा जाता है. क्योंकि ज्यादातर इन पर अवलोकितेश्वर (ओम मणि पद्मे हुं) का छह अक्षरों वाला मंत्र खुदा हुआ होता है. यह नक्काशी केवल मंत्र तक सीमित न रहकर एक महत्वपूर्ण मंत्र है. यह ज्ञात नहीं है कि मंत्र कब प्रयोग में आया, लेकिन मंत्र का सबसे पहला रिकॉर्ड 10वीं सदी के अंत और 11वीं सदी की शुरुआत में कारण्डव्यूह सूत्र में है. (Maling and Nako village of Kinnaur) (Buddhism in Kinnaur) (Carvings of buddhist mantras in Kinnaur)
नाको व मलिंग गांव में पत्थरों पर बौद्ध मंत्रों की नक्काशी. मंत्र से पड़ता है सकारात्मक प्रभाव-तिब्बती बौद्धों का मानना है कि इस मंत्र (प्रार्थना) को कहने से करुणा के अवतार चैनरेजी के शक्तिशाली परोपकारी ध्यान और आशीर्वाद का आह्वान होता है. तिब्बती बौद्ध धर्म की मान्यता में, मंत्र के लिखित रूप को दूर से देखने से ही एक सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसलिए मंत्र को मणि पत्थरों में तराशा जाता है और यही विश्वास मणि पाषाण परंपरा का मूल है. मणि पत्थरों को बुद्ध के बलिदान के रूप में पवित्र माना जाता है. मणि पत्थर को बौद्ध धर्म में 'मन झा' कहा जाता है, जिसका अर्थ संस्कृत मंडला है.
पत्थरों का नहीं होता कोई आकार व रंग-अधिकांश तिब्बती पत्थर की नक्काशी साधारण चट्टानों, पत्थरों और कंकड़ पर होता है. पत्थरों पर की जाने वाली नक्काशी के लिए उपयोग होने वाले पत्थर छोटे-छोटे कंकड़ से लेकर पहाड़ की गुफा के बड़े आंतरिक भाग तक कुछ भी हो सकता है. बौद्ध धर्म के अनुसार जितना विशाल पत्थर होगा उतना ही ज्यादा उसका पुण्य होगा. यदि आप अपने कद के जितने बड़े अक्षरों यानी मंत्रों को पत्थरों पर खोद कर लिखते हैं तो इन्हें 'माने गोपछत' कहा जाता है. मणि पत्थरों का कोई विशिष्ट आकार और रंग और विषय नहीं होता है.
नक्काशीदार प्रार्थना पत्थर पवित्र स्थानों पर रखे जाते हैं-आमतौर पर, पत्थरों को प्रार्थनाओं के लिए सकारात्मक स्थिति, जैसे कि लंबे जीवन, स्वास्थ्य और सफलता प्राप्त करने के लिए उकेरा जाता है और मृतक के लिए नकारात्मकताओं और बाधाओं को दूर करने के पत्थरों पर सूत्र या मंत्र, कभी-कभी देवताओं की छवियां उकेरी जाती हैं. नक्काशीदार प्रार्थना पत्थरों को पवित्र स्थानों पर ले जाया जाता है. जहां वे विशाल ढेर में जमा हो जाते हैं जिसे अब मणि ढेर या 'मधंग' कहा जाता है. नक्काशी के बाद, अक्षरों को अक्सर पांच रंगों में रंगा जाता है- लाल, नीला, सफेद, पीला और हरा. ये कलाकृतियां तिब्बती संस्कृति की कलात्मक भाषा हैं, जो हमें बौद्ध श्रम के मूल इतिहास और संस्कृति के बारे में और जानने के लिए मूल्यवान सामग्री प्रदान करती हैं. (Stone carving in Maling and Nako village) (Stone carving in himachal) (Stone carving considered sacred in Buddhism)
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