किन्नौर: देशभर में शादी से जुड़ी अनेकों परंपराएं हैं, लेकिन जिला किन्नौर में वैवाहिक परंपराएं अलग तरीके से निभाई जाती हैं. यहा विवाह को रानेकांग कहा जाता है. यहां शादी के दौरान सात फेरे नहीं लिए जाते और न ही विवाह के लिए परिवार की सहमति. किन्नौर में देवी-देवताओं की मर्जी के बाद ही शादी की तारीख निकाली जाती है. शादी की तैयारियां शुरू होते ही भव्य तरीके से देवता को घर पर बुलाया जाता है. बारात में दूल्हे की तरह ही वेशभूषा पहनकर एक साथी को भी तैयार किया जाता है. देवता का आदेश मिलते ही दूल्हे की बारात को दुल्हन के घर जाने को कहा जाता है. दुल्हन के घर जाते समय रास्ते में नदी,नालों के पास पुजारी बुरी शक्तियों को भगाने के लिए पूजा करते हैं.
बारात पहुंचते ही ग्रामीण महिलाएं हाथ में शुर धूप,अंगूरी शराब लेकर दूल्हे का भव्य स्वागत करती हैं. सभी बारातियों को गले मे सूखे मेवों की माला दी जाती है. सूखे मेवों में चिलगोजा,अखरोट,बादाम,काले अंगूर,खुमानी के गिरी होते है. दुल्हन का परंपरागत परिधान और गहनों से श्रृंगार किया गया जाता है. सिर से पांव तक गहनों से लदी दुल्हन का श्रृंगार देखते ही बनता है. सिर पर प्रठेपण (टोपी) जो तीन-चार फूलों के रंग से सजी होती है. माथे पर बंधा होता है सुंदर डिजाइन का चांदी सोने का जिससे पूरा चेहरा ही ढक जाता है. यह पट्टा पूरे सोने या पूरे चांदी या फिर दोनों धातुओं के संयोग से मिलकर भी बना हो सकता है. नाक पर लौंग, बलाक, बालु (नथ) सोने के बने होते हैं.