- हर मोड़ पर मेरा इम्तिहान लेती रही जिंदगी
- मेरे जज्बे और हिम्मत के आगे वो खुद फेल होती रही
मुंबई/कांगड़ा:ये लफ्ज 74 बरस के देसराज की जिंदगी का आइना हैं. जिसमें जिंदगी झांककर देखे तो शायद पानी-पानी हो जाए. हिमाचल के कांगड़ा जिले के रहने वाले देसराज पिछले करीब 4 दशक से मुंबई में ऑटो चला रहे हैं. 80 के दशक में मुंबई पहुंचे देसराज ने शुरुआत में कई काम किए लेकिन नौकरी मिलने औऱ छूटने का सिलसिला जारी रहा. आखिर में देसराज साल 1984 में ऑटो चलाना सीखा.
मजबूरी में ऑटो को ही बनाया घर
एक वक्त था जब मुंबई में देसराज का घर भी था लेकिन वक्त ने ऐसी मार पड़ी कि 74 साल की उम्र में भी ऑटो चलाना पड़ रहा है. आज सिर पर छत नहीं है इसलिये ऑटो में ही रहने को मजबूर हैं. गांव में देसराज की पत्नी, बहू और पोता-पोती रहते हैं जिनके लिए वो मुंबई में ऑटो चलाकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं. ऑटो में ही रहते हैं ताकि घर का किराया बचाकर गांव भेज सकें. जिससे वो अपने पोते-पोतियों को पढ़ने के लिए स्कूल भेज सकें.
दो साल में दो बेटों की हुई मौत
देसराज एक बेटी और तीन बेटों के पिता थे. लेकिन साल 2016 में बड़े बेटे और फिर दो साल बाद दूसरे बेटे की मौत हो गई. पूरा परिवार की हिम्मत टूटी तो देसराज ने सहारा देने के लिए मुंबई का घर बेचकर सभी को गांव भेज दिया और खुद ऑटो चलाकर परिवार के लिए गुजर बसर का जुगाड़ करने लगे.
कोरोना काल में देसराज के तीसरे बेटे की भी नौकरी चली गई जो सिक्योरिटी गार्ड का काम करता था. परिवार के 7 लोगों को पालने की जिम्मेदारी देसराज के कंधे पर है. गांव में पत्नी मनरेगा के तहत दिहाड़ी करके अपने पति का हाथ बंटाती है.