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मुंबई में हिमाचल के ऑटो वाले 'बाबा'! गरीबी में थ्री व्हीलर बन गया घर, सोशल मीडिया ने बदल दी जिंदगी

देशराज सिंह हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला के एक छोटे से गांव सगूर खास के रहने वाले हैं. जो अपने सपनों को पूरा करने मुंबई गए थे और पिछले 35 साल से मुंबई में ऑटो ड्राइवर का काम करते हैं. कई सालों से वो ऑटो में ही रह रहे हैं.

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Published : Feb 24, 2021, 8:53 PM IST

Updated : Feb 26, 2021, 3:56 PM IST

Story of auto driver Deshraj, ऑटो चालक देशराज की कहानी
ऑटो में आराम करते देशराज सिंह

  • हर मोड़ पर मेरा इम्तिहान लेती रही जिंदगी
  • मेरे जज्बे और हिम्मत के आगे वो खुद फेल होती रही

मुंबई/कांगड़ा:ये लफ्ज 74 बरस के देसराज की जिंदगी का आइना हैं. जिसमें जिंदगी झांककर देखे तो शायद पानी-पानी हो जाए. हिमाचल के कांगड़ा जिले के रहने वाले देसराज पिछले करीब 4 दशक से मुंबई में ऑटो चला रहे हैं. 80 के दशक में मुंबई पहुंचे देसराज ने शुरुआत में कई काम किए लेकिन नौकरी मिलने औऱ छूटने का सिलसिला जारी रहा. आखिर में देसराज साल 1984 में ऑटो चलाना सीखा.

मजबूरी में ऑटो को ही बनाया घर

एक वक्त था जब मुंबई में देसराज का घर भी था लेकिन वक्त ने ऐसी मार पड़ी कि 74 साल की उम्र में भी ऑटो चलाना पड़ रहा है. आज सिर पर छत नहीं है इसलिये ऑटो में ही रहने को मजबूर हैं. गांव में देसराज की पत्नी, बहू और पोता-पोती रहते हैं जिनके लिए वो मुंबई में ऑटो चलाकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं. ऑटो में ही रहते हैं ताकि घर का किराया बचाकर गांव भेज सकें. जिससे वो अपने पोते-पोतियों को पढ़ने के लिए स्कूल भेज सकें.

ऑटो में आराम करते देशराज सिंह

दो साल में दो बेटों की हुई मौत

देसराज एक बेटी और तीन बेटों के पिता थे. लेकिन साल 2016 में बड़े बेटे और फिर दो साल बाद दूसरे बेटे की मौत हो गई. पूरा परिवार की हिम्मत टूटी तो देसराज ने सहारा देने के लिए मुंबई का घर बेचकर सभी को गांव भेज दिया और खुद ऑटो चलाकर परिवार के लिए गुजर बसर का जुगाड़ करने लगे.

कोरोना काल में देसराज के तीसरे बेटे की भी नौकरी चली गई जो सिक्योरिटी गार्ड का काम करता था. परिवार के 7 लोगों को पालने की जिम्मेदारी देसराज के कंधे पर है. गांव में पत्नी मनरेगा के तहत दिहाड़ी करके अपने पति का हाथ बंटाती है.

पोती को टीचर बनाने चाहते हैं देसराज

देसराज बताते हैं कि मेरे पोता-पोती स्कूल जाते हैं. मैं चाहता हूं कि वो खूब पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़े हों. इसके लिए मैं और मेरी पत्नी खूब मेहनत करते हैं.

देसराज अपनी पोती को टीचर बनाना चाहते हैं. देसराज का कहना है कि वो एक दिन की भी छुट्टी नहीं ले सकते, क्योंकि उनके परिवार की आर्थिक हालत उतनी अच्छी नहीं है और उनके परिवार को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है. जितना भी देशराज कमाते हैं उसमें से अपने खर्च के लिए वो ना के बराबर ही पैसे रखकर बाकी सारे पैसे अपने परिवार को भेजते हैं.

सोशल मीडिया से मिली 24 लाख की मदद

देसराज की इस कहानी को 'ह्यूमन्स ऑफ बॉम्बे' नाम की एक संस्था ने अपने फेसबुक पेज पर शेयर किया. जिसके बाद देसराज की मदद के लिए क्राउड फंडिंग के जरिये मदद के हाथ उठने लगे. इस पहल के जरिये देसराज की मदद के लिए 20 लाख रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन लोगों ने दिल खोलकर मदद की और 24 लाख रुपये इकट्ठे हो गए. जिसका चैक देसराज का सौंप दिया गया है. अब देसराज इन पैसों से अपनी मुश्किलों का हल ढूंढ सकते हैं. इस मदद के लिए वो लोगों का शुक्रिया करते हैं.

ये कहानी देसराज के जज्बे की कहानी है जिसके आगे जिंदगी की हर मुश्किल ढेर हो गई. देसराज ने हर परेशानी को अपनी हिम्मत से हरा दिया और आज सोशल मीडिया की मदद से मुंबई के ऑटोवाले बाबा की परेशानी भी हल हो गई.

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Last Updated : Feb 26, 2021, 3:56 PM IST

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