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विजय दिवस: कारगिल युद्ध का वो पहला शहीद जिसे 21 साल बाद भी नहीं मिला न्याय

कारगिल विजय दिवस के 21 साल पूरे हो गए हैं. 26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने करगिल युद्ध के दौरान चलाए गए 'ऑपरेशन विजय' को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारतीय भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था, लेकिन इस करगिल युद्ध के पहले शहीद कहलाने वाले सौरभ कालिया को आज तक न्याय नहीं मिला.

special story on  martyr Captain Saurabh Kalia
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Published : Jul 26, 2020, 6:04 AM IST

Updated : Jul 26, 2020, 9:52 AM IST

धर्मशाला: 26 जुलाई को देश कारगिल युद्ध में विजय की 21वीं सालगिरह मना रहा है. 21 साल पहले भारतीय सैनिकों के बलिदान, समर्पण और त्याग के बूते भारत जंग तो जीत गया था, लेकिन इस कारगिल युद्ध के पहले शहीद कहलाने वाले सौरभ कालिया को आज तक न्याय नहीं मिला.

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया के माता-पिता आज भी बेटे को न्याय दिलाने के लिए और पाकिस्तान का चेहरा पूरी दुनिया के सामने लाने के लिए 21 सालों से अकेले बिना किसी हथियारों से लड़ रहे हैं.

29 जून 1976 को अमृतसर में जन्मे सौरभ कालिया का चयन अगस्त 1997 में एनडीए परीक्षा के जरिए सेना में हुआ था. ट्रेनिंग के बाद 12 दिसंबर 1998 को भारतीय थलसेना में उन्हे 4 जाट रेजिमेंट में कमीशन मिला. कुछ दिनों तक जाट रेजिमेंट सेंटर, बरेली में तैनाती के बाद उनकी पोस्टिंग कारगिल सेक्टर में हुई.

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कारगिल में पोस्टिंग के दौरान उन्होने मां से कहा था 'मां कहीं दूर पोस्टिंग जा रहा हूं, कई दिन तक फोन न आए तो चिंता मत करना'. मई के महीने में कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ की खबरें भारतीय सेना को मिलने लगीं.

कैद में कैप्टन कालिया को कई अमानवीय यातनाएं दी

दुर्भाग्यवश मई 1999 में सौरभ कालिया को पांच सैनिकों के साथ कारगिल के कोकसर में दुश्मनों की टोह लेने के लिए भेजा गया, लेकिन सेना इस टुकड़ी को पाकिस्तानी सेना के हाथ लग गए. पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी कैद में सौरभ कालिया को कई अमानवीय यातनाएं दी.

कैप्टन सौरभ कालिया के शरीर को सिगरेट से दागा गया, आंखों को सरिया घुसा कर निकल लिया गया. हाथ पांव के नाखून उखाड़ लिए गए. हाथ-पांव और गुप्तांगों को काट दिया गया. राइफल के बट से दांत तोड़ दिए गए और चेहरा बिगाड़ दिया गया.

कई दिन तक अमानविय यातनाओं का सिलसिला चलने के बाद शरीर को गोलियों से छलनी कर दिया गया. सौरभ कालिया और उनकी टीम में शामिल पांच सैनिकों के शव 22 दिन बाद क्षत विक्षत हालत में नौ जून को भारतीय सेना को सौंपे गए.

सौरभ कालिया का पार्थिव शरीर जब घर आया तो बेटे को वो मां भी नहीं पहचान पाई जिसे उसने 9 महीने कोख में पालने के बाद कई साल अपनी गोद में खिलाया था. जो पिता कभी कंधे पर बिठाकर अपने बेटों को स्कूल से घर लेकर आता था, ठीक 21 साल पहले तिरंगे में लिपटे और ताबूत में कैद बेटे के छलनी शरीर को कंधे पर उठाकर घर पहुंचा था. उस वीर के शरीर को जिसने भी देखा उसने यही कहा होगा कि पाकिस्तान शैतानों और बहशियों का देश है.

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21 वर्षों से बेटे को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे पिता

कैप्टन कालिया के पिता ने भी पाकिस्तान का असली चेहरा पूरी दुनिया के सामने लाने की ठान रखी हैं. सौरभ कालिया के साथ युद्ध के दौरान हुई बर्बरता को लेकर उनके पिता एनके कालिया ने कहा कि उनकी लड़ाई पिछले 21 वर्षों से जारी है.

डॉ. एनके कालिया बताते हैं कि शहादत के समय तक्कालीन प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री से लेकर रक्षा मंत्री ने वादा किया था कि इस मामले को हम पाकिस्तान के समक्ष उठाएंगे, लेकिन इतने सालों में नहीं लगा कि इस मामले में कोई सुनवाई हुई है.

साल 2012 में हमने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में उठाया और हमारी सुनवाई भी हुई. यह दो देशों के बीच में है और विदेश मंत्रालय इस मामले में कोई कार्रवाई करे तभी हमे इंसाफ मिलेगा.

कारगिल युद्ध के विजय दिवस पर डॉ. एनके कालिया ने कहा कि देश के उन तमाम सैनिकों का धन्यवाद करता हूं जो हमेशा देश के सिर को ऊंचा रखते हैं. उन्होंने कहा की उन सभी शहीदों के आगे नमन करता हूं, आज सेना हमारी सुरक्षा में दिन रात डटी हुई है.

कारगिल युद्ध को लेकर उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान सेना में आपस मे एक संधि थी कि, ठंड के मौसम के दौरान दोनों देशों के सैनिक ऊंची चोटियों से नीचे आ जाएंगे, लेकिन पाकिस्तान का इतिहास है कि उसने हमेशआ भारत को पीठ में छुरा घोंपा है.

इसी दौरान कारगिल में ड्यूटी कर रहे सौरभ कालिया को आदेश हुआ कि वह बॉर्डर पर जाकर हालात देखें और भारतीय चौकियों की सूचना अपने ऑफिसर तक पहुंचाएं. सौरभ कालिया ने ही सबसे पहले पाकिस्तानी सैनिकों की गतिविधियों के बारे में भारतीय सेना को जानकारी दी थी. अगर वह समय पर ऐसा नहीं करते तो भारतीय सेना को इसका काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता.

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कैप्टन कालिया ने जन्मदिन पर घर आने को कहा था

एनके कालिया बताते हैं कि उस वक्त टेलीफोन और अन्य कम्यूनिकेशन की सुविधाएं उस स्तर पर नहीं होती थी. 30 अप्रैल को छोटे बेटे के जन्मदिन पर उन्होंने हमसे बात की थी और कहा था कि 29 जून को वो अपने जन्मदिन के दिन घर आएंगे...वो आये तो घर जरूर, लेकिन तिरंगे में लिपटकर आये.

डॉ. कालिया कहते हैं, सरकार ने हमें जो भी दिया हम उसके लिए शुक्रगुजार हैं. अगर उन्होंने हमें कुछ दिया भी नहीं होता तो हमें इसका भी कोई गिला नहीं होता. बस हमारा एक ही मुद्दा है कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों के साथ जो पाकिस्तान की ओर से बर्बरता की गई वो उचित नहीं था.

आखिरी सांस तक न्याय के लि लड़ता रहूंगा- एनके कालिया

डॉ. कालिया दुखी मन से कहते हैं कि इस बर्बरता के बाद भी आज तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सुप्रीम कोर्ट में भी इस केस को उठाया गया, लेकिन आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला. डॉ. कालिया कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर सांस है में इस मुद्दे को उठाता रहूंगा.

वहीं, कैप्टन सौरभ कालिया के भाई वैभव कालिया कहते हैं कि उस समय कारगिल युद्ध बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में लड़ा गया और इस युद्ध को जीता गया था. उन्होंने कहा कि आज देश की परिस्थिति थोड़ी अलग है जो हमें भाई-भाई कहते थे वो आज दुश्मन हो गए हैं, इसलिए आज हमें हमारी फौज का प्रोत्साहन करना जरूरी है.

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बचपन की यादों के किस्से

वैभव बताते हैं कि सौरभ उनसे 2 साल बड़े थे ओर उनका स्वभाव भी काफी देखभाल वाला था और वो अकसर घर में मेरे वकील का काम करते थे, वो खाना बहुत अच्छा बनाते थे. वैभव कहते हैं कि सौरभ मुझसे एक क्लास आगे पढ़ते थे जिस वजह से मुझे उनके नोट्स भी मिल जाते थे.

उन्होंने कहा कि जब सौरभ आईएमए से पास आउट होकर घर आये थे, तो मैंने उनसे मजाक में कहा कि चलो यूनिफॉर्म में होलटा चलते हैं और देखते हैं कि कैसे ऑफिसर को सैल्यूट मारी जाती है, लेकिन उन्होंने कहा कि होलटा चल पड़ेंगे, लेकिन यूनिफॉर्म में नहीं क्योकि इस वक्त में ड्यूटी पर नहीं हूं.

वैभव बताते हैं कि उस वक्त केवल चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी. चिट्ठियों में वो बस इतना ही लिखते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है. आखिरी बार उनसे 30 अप्रैल को बात हुई थी कि वो अपने जन्मदिन पर घर आएंगे तो मैंने कहा था कि हम पार्टी करेंगे. उन्होंने अपना प्रॉमिस पूरा तो किया, लेकिन उस हिसाब से नहीं हो पाया.

Last Updated : Jul 26, 2020, 9:52 AM IST

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