कांगड़ा: हिमाचल प्रदेश की अहम संसदीय क्षेत्र कांगड़ा में चुनावी सरगर्मियां बढ़ गई हैं. इस बार कांग्रेस और भाजपा ने दो नए चेहरों को चुनावी रण में उतारा है. भाजपा ने जहां किशन कपूर पर दांव खेला है तो वहीं कांग्रेस ने पवन काजल को टिकट दिया है.
11 लोकसभा चुनावों में 6 बार भाजपा, जबकि 4 बार कांग्रेस को जीत मिली है. कांगड़ा संसदीय सीट से सबसे ज्यादा बार शांता कुमार संसद पहुंचे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में भी शांता कुमार भारी मतों से जीते थे.
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में आज भी कई मुद्दे ऐसे है जो वर्षों से लंबिते हैं और जनता उनका हिसाब केंद्र सरकार और सांसद से मांग रही है.
दशकों से चली आ रही सिकरीधार सीमेंट प्लांट की मांग आज तक पूरी नहीं हो पाई है. 1977 से लेकर आज तक कई बार लोगों को इसके सपने दिखाए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हो पाया है.
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र पर स्पेशल रिपोर्ट सीएम जयराम का दावा है कि इस प्लांट के लिए सरकार गंभीर है और इस प्रोजेक्ट को जमीन पर उतारने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं.
वहीं सांसद शांता कुमार का कहना है कि किन्हीं अड़चनों के कारण ये प्लांट नहीं बन पाया है. लेकिन जल्द ही चंबावासियों को ये सौगात दी जाएगी.
हिमाचल का सबसे बड़ा मुद्दा रेलवे का रहा है. कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में रेलवे विस्तारीकरण की दिशा में कोई काम नहीं हो पाया है.
दशकों से विस्थापन की पीड़ा झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को अभी भी न्याय का इंतजार है. राजस्थान सरकार की सुस्ती से पौंग बांध विस्थापितों को हक मिलने में लगातार देरी हो रही है. राजस्थान सरकार ने ये स्वीकार किया है कि उनके पास पर्याप्त पैसा नहीं है, लिहाजा वे विस्थापितों को राजस्थान में ही भूमि उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रही है.
चुनाव के दौरान लोगों को उनके बेहतर भविष्य के सपने जरूर दिखाए जाते हैं, लेकिन बाद में इनकी जिंदगियां राम भरोसे कर दी जाती है. दो राज्यों के बीच चले इस मामले में हजारों पौंग विस्थापित पिस रहे हैं.
देहरा के विधायक का होशियार सिंह कई बार पौंग विस्थापितों को न्याय दिलाने के लिए रोष प्रदर्शन कर चुके हैं. एक बार फिर लोकसभा चुनाव के दौरान ये आश्वासन दिया जा रहा है कि जल्द उन्हें पुनर्वासित किया जाएगा.
केंद्रीय विश्वविद्यालय पर लंबे समय से सियासत गरमाई रही. पक्ष और विपक्ष में आरोप प्रत्यारोप का दौर चला रहा. आज भी 9 साल से केंद्रीय विश्वविद्यालय अपने स्थाई भवन के लिए तरस रहा है. हालांकि इसके दो कैंपस बनने है, जिसका शिलान्यास फरवरी 2019 में किया गया है.
शक्तिपीठों की भूमि कहे जाने वाले कांगड़ा और प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर चंबा में कई रमणीय स्थल है, लेकिन क्नेक्टिविटी की कमी के कारण अभी तक पर्यटन को बढ़ावा नहीं मिल पाया है.
वरिष्ठ पत्रकार उदयवीर पठानिया का कहना है कि कांगड़ा में शक्तिपीठों और पर्यटन स्थलों में क्नेक्टिविटी की दरकार है और जिससे पर्यटन क्षेत्र प्रभावित हो रहा है.
कांगड़ा संसदीय क्षेत्र में बहुत सी ऐसी मांगे है जिन्हें पूरा होने का आश्वासन समय-समय पर दिया तो जाता रहा लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ खास काम नहीं हो पाया. आज भी लोगों को उन मांगों को पूरा होने का इंतजार है.