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नवरात्रों के लिए कांगड़ा के शक्तिपीठ तैयार, चामुंडा नंदीकेश्वर धाम में अनुष्ठान करेंगे 31 पंडित, प्रशासन ने किए पुख्ता इंतजाम

नवरात्रों के लिए कांगड़ा जिले के शक्तिपीठ तैयार हैं. प्रशासन ने इसके लिए पुख्ता इंतजाम भी किए हैं. कांगड़ा के श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम में 22 से 30 मार्च तक मनाए जाने वाले नवरात्र उत्सव के दौरान 31 विद्वान पंडित विभिन्न अनुष्ठान करेंगे. ये जानकारी एसडीएम धर्मशाला शिल्पी बेक्टा ने दी. उन्होंने कहा कि नवरात्रों को लेकर प्रशासन ने तैयारियां पूरी कर ली है.

नवरात्रों के लिए कांगड़ा के शक्तिपीठ तैयार
नवरात्रों के लिए कांगड़ा के शक्तिपीठ तैयार

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Published : Mar 20, 2023, 7:47 PM IST

धर्मशाला: कांगड़ा जिले के शक्तिपीठों में नवरात्रों पर देश-विदेश के श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है, जिसको देखते हुए मंदिर प्रशासनों की ओर से भी व्यापक तैयारियां की जा रही हैं. इसी कड़ी में श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम में 22 से 30 मार्च तक मनाए जाने वाले नवरात्र उत्सव के दौरान 31 विद्वान पंडित विभिन्न अनुष्ठान करेंगे. मंदिर सहायक आयुक्त एवं एसडीएम धर्मशाला शिल्पी बेक्टा ने बताया कि नवरात्रों के दौरान मंदिर में सतचंडी पाठ, रुद्राभिषेक पाठ, गायत्री पाठ, भागवत कथा का आयोजन किया जाएगा.

अष्टमी की रात शास्त्रीय संगीत का आयोजन होगा, जबकि नवमी को नवरात्रों के दौरान रखे गए पाठ की पूर्णाहुति डाली जाएगी. श्री चामुंडा नंदीकेश्वर धाम के साथ आदि हिमानी चामुंडा मंदिर में भी इस तरह से अनुष्ठान किए जाएंगे, जिसके लिए पुजारी सहित 3 लोगों की टीम मंदिर में भेजी गई है. नवरात्रों के दौरान चामुंडा मंदिर में सुरक्षा व्यवस्था हेतू जिला पुलिस से एडिशनल सिक्योरिटी की मांग की गई है. नवरात्रों के चलते हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए 14 सीसीटीवी कैमरे इंस्टॉल किए जाएंगे, जबकि मंदिर परिसर में पहले से इंस्टॉल सीसीटीवी कैमरों के अतिरिक्त होंगे.

श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर:श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर जिसे कांगड़ा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू मंदिर है, जो हिमाचल के कांगड़ा में स्थित है. माता बज्रेश्वरी देवी मंदिर को नगर कोट की देवी व कांगड़ा देवी के नाम से भी जाना जाता है और इसलिए इस मंदिर को नगर कोट धाम भी कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती के पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुंड में उन्हें न बुलाने पर उन्होंने अपना और भगवान शिव का अपमान समझा था और उसी हवन कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिये थे. तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण्ड के चक्कर लगा रहे थे. उसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था और उनके ऊग धरती पर जगह-जगह गिरे. जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां एक शक्तिपीठ बन गया. उसमें से सती की बायां वक्षस्थल इस स्थान पर गिरा था, जिसे मां ब्रजेश्वरी या कांगड़ा माई के नाम से पूजा जाता है.

चामुंडा देवी मंदिर:चामुंडा देवी का मंदिर कांगड़ा जिले में बाण गंगा नदी के तट पर पडर नामक एक गांव में स्थित है. स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर यह मंदिर शक्तिपीठ के रूप में ही पूजा जाता है. स्थानीय लोगों की आस्था है कि देवी चामुंडा का यह मंदिर ‘भगवा शिव और माता शक्ति’ का एक ऐसा निवास स्थल है जहां वे अपने विश्व भ्रमण के दौरान विश्राम करते हैं. माता चामुंडा को यहां ‘हिमानी देवी मंदिर’ के नाम से भी पहचाना जाता है. इसके अलावा भगवान शिव के प्रमुख गण नंदी के नाम पर ‘चामुंडा नंदिकेश्वर धाम’ के रूप में भी इस स्थान का विशेष महत्व है. पुराणों की कथाओं के अनुसार ‘चामुंडा नंदिकेश्वर धाम’ भगवान शिव और माता शक्ति का निवास स्थान है. इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, ‘चंड’ और ‘मुंड’ नाम के राक्षसों का अंत करने के बाद देवी माता के उस रौद्र रूप को यहां सभी देवताओं की ओर से “रुद्र चामुंडा” के रूप में उपाधि और पहचान मिली थी, इसलिए इस स्थान का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है.

ज्वाला देवी मंदिर:ज्वाला देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी नामक गांव में ऊंची पहाड़ियों पर स्थिति है. कहा जाता है कि यहां मां शक्ति की नौ ज्वालाएं प्रज्ज्लित हैं. माना जाता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह गिरी थी. इस मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. ज्वाला देवी का मंदिर देवी के 51 शक्ति पीठों में से एक है. यह हिन्दू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में शामिल है. ज्वालामुखी देवी हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा से 30 किलो मीटर दूर स्तिथ है. ज्वालामुखी मंदिर को जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है. कालीधर पर्वत की शांत तलहटी में बसे इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है. ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवो को जाता है. इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्ति पीठों में होती है. मान्यता है यहां देवी सती की जीभ गिरी थी.

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