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ऐसा शक्तिपीठ जिसे मुगलों ने 5 बार लूटा, भूकंप ने गिरा दिया, मंदिर का ट्रस्ट अब सरकार को दान देगा एक करोड़ - राहतकोष

शक्तिपीठ माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर न्यास की बैठक मंदिर सहायक आयुक्त व उपमंडलाधिकारी कांगड़ा जतिन लाल की अध्यक्षता में हुई जिसमें मुख्यमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपए देने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया.

श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर

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Published : Aug 14, 2019, 7:53 PM IST

कांगड़ा: जिस शक्तिपीठ को मुगलों ने कई बार लूटा और भूकम्प ने गिरा दिया, उसी शक्तिपीठ का ट्रस्ट अब सरकार को एक करोड़ रुपए दान करेगा. बता दें कि ये दान मुख्यमंत्री राहतकोष को दिया जाएगा.

जिला कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी मंदिर ये वही मन्दिर है जिसे किसी दौर में मुगलों ने 5 बार लूटा, तोड़ने की कोशिश की लेकिन माता की पिंडी को छू नही सके. भूकंप ने भी इस मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया लेकिन लोगों की आस्था ऐसी है कि इस नुकसान की भरपाई जल्द कर ली गई.

मदिर में साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. ऐसे में मंदिर में चढ़ावा भी काफी होता है. लोग नकद पैसों के साथ माता को चढ़ावे के तौर पर गहने भी दान करते है. जिस वजह से सालाना यहां करोड़ों रुपए दान के रूप में एकत्रित हो जाते हैं. इस पैसे से मन्दिर में विकास कार्यों के साथ अन्य काम किए जाते हैं, जिसे एक ट्रस्ट के माध्यम से किया जाता है.

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मंदिर ट्रस्ट सरकार को राहत कोष के जरिए एक करोड़ रुपए देने जा रहा है. मंगलवार को शक्तिपीठ माता श्री बज्रेश्वरी देवी मंदिर न्यास की बैठक मंदिर सहायक आयुक्त व उपमंडलाधिकारी कांगड़ा जतिन लाल की अध्यक्षता में हुई जिसमें मुख्यमंत्री राहत कोष में एक करोड़ रुपए देने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया गया.

बता दें कि कांगड़ा का पुराना नाम नगर कोट था और यह कहा जाता है कि इस मंदिर को पांडव काल में बनाया गया था. व्रजेश्वरी मंदिर के गृभ ग्रह में माता एक पिण्डी के रुप में विराज मान है, इस पिंडी की ही देवी के रूप में पूजा की जाती है. ब्रजेश्वरी देवी जी का मंदिर 51 सिद्व पीठों में से एक माना जाता है.

मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए ब्रजरेश्वरी शक्तिपीठ में मां के वक्ष की पूजा होती है. मां ब्रजेश्वरी देवी के इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन मां की पांच बार आरती होती है. सुबह मंदिर के कपाट खुलते ही सबसे पहले मां की शैय्या को उठाया जाता है. उसके बाद रात्रि के श्रृंगार में ही मां की मंगला आरती की जाती है.

मंगला आरती के बाद मां का रात्रि श्रृंगार उतार कर उनकी तीनों पिण्डियों का जल, दूध, दही, घी, और शहद के पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. उसके बाद पीले चंदन से मां का श्रृंगार कर उन्हें नए वस्त्र और सोने के आभूषण पहनाएं जाते हैं. फिर चना पूरी, फल और मेवे का भोग लगाकर मां की प्रात: आरती संपन्न होती है. खास बात यह है की दोपहर की आरती और मां को भोग लगाने की रस्म को गुप्त रखा जाता है.

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