धर्मशाला:हिमाचल में मानसून ने दस्तक दे दी है. हालांकि अभी तक ये पूरी तरह से सक्रिय नहीं हुआ है, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि प्री मानसून में बारिश का रिकॉर्ड टूटने के बाद मानसून में भी ज्यादा बारिश हो सकती है.
हिमाचल में हर साल मानसून के दौरान सरकारी व्यवस्थाओं की पोल खुलना नई बात नहीं है, लेकिन इस साल अपनी साख को बचाने के लिए प्रशासन तैयारियों में जुट गया है.
नगर निगम धर्मशाला ने भी बरसात के इस मौसम से निपटने के लिए कमर कस ली है. अन्य जिलों के मुकाबले धर्मशाला में सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की जाती है.
ऐसे में बारिश के पानी की निकासी से लेकर सफाई व्यवस्था को बनाए रखना नगर निगम धर्मशाला के लिए हर साल चुनौती बन जाता है. इस साल मानसून के आते ही एमसी धर्मशाला ने ड्रेनेज सिस्टम को साफ करना शुरू कर दिया है. इसके साथ ही टूटी हुई कुहलों की मुरम्मत की जा रही है.
भले ही निगम शहर के नालों की सफाई करवा रहा हो, लेकिन ड्रेनेज सिस्टम से निकलने वाली गाद की डंपिंग में हर साल सफाई कर्मचारियों और ठेकेदारों की तरफ से बड़ी लापरवाही बरती जाती है.
नालियों में जमी गाद को सड़क किनारे की ठिकाने लगा दिया जाता है. जिसका खामियाजा भारी बारिश के दौरान शहर की जनता और लोकनिर्माण विभाग को भुगतना पड़ता है.
एमसी धर्मशाला के मेयर दवेंद्र जग्गी की माने तो निगम की तरफ से तैनात सफाई कर्मचारियों के लिए गाड़ियों की व्यवस्था की गई है. वह नालियों से निकलने वाली सिल्ट को डंपिंग साइट या फिर मक डंपिंग साइट पर फेंकते हैं.
एमसी धर्मशाला के मेयर का कहना है कि भारी बारिश और इससे होने वाले नुकसान से निपटने के लिए वह अपनी तरफ से हर संभव प्रयास कर रहे हैं.
नगर निगम निर्धारित लक्ष्य के तहत 20 लाख रुपये से कुहलों की मरम्मत पर खर्च कर रहा है. इसके अलावा ड्रेनेज सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए 50 लाख रुपये खर्च किेए जा रहे हैं.
निगम मानसून से निपटने के लिए भरपूर कोशिश कर रहा है. किसी भी नुकसान से बचने के लिए इन दिनों धर्मशाला नगर निगम युद्ध स्तर पर तैयारियां कर रहा है. फिर चाहे वो सफाई व्यवस्था को सुचारू रखने की बात हो या फिर नालियों को दुरुस्त रखने की.
अब देखना ये होगा कि एमसी के दावे और तैयारियां कितनी कारगर साबित होती है. इस बात से भी मूंह मोड़ा नहीं जा सकता कि हर साल प्रशासन और सरकार की लाख तैयारियों के बावजूद हिमाचल में मानसून कहर बन कर बरसता है. मानसून के दौरान सरकार को करोड़ों का नुकसान उठाना पड़ता है.