पालमपुर/शिमला: आज कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas 2022) है. दुनिया की इस सबसे मुश्किल जंग को आज 23 साल बीत चुके हैं. देश अपने उन रणबांकुरों को याद कर रहा है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया. कारगिल जंग में कई नायकों के किस्से हम हमेशा सुनते आए हैं, उन्हीं में से एक हैं शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा, जिनके जिक्र के बिना करगिल की जीत की कहानी हमेशा अधूरी रहेगी. क्योंकि जब-जब कारगिल की बात होगी कैप्टन विक्रम बत्रा (captain vikram batra) का जिक्र होना लाजमी हो जाएगा. कारगिल के उस शेरशाह के किस्से ही ऐसे हैं, जिन्हें सुनकर आपमें जोश भर जाएगा.
फिल्मी पर्दे पर भी दिखा कारगिल का शेरशाह- साल 2021 में बॉलीवुड फिल्म 'शेरशाह' रिलीज हुई थी. जिसमें सिद्धार्थ मल्होत्रा ने विक्रम बत्रा का किरदार निभाया था. वैसे शेरशाह सिर्फ एक फिल्म का नाम नहीं है, असल में ये कहानी उस रियल नायक की है जिसके बिना करगिल के जंग की कहानी अधूरी है. इससे पहले भी करगिल युद्ध पर बनी फिल्म LOC KARGIL में भी विक्रम बत्रा का किरदार अभिषेक बच्चन ने निभाया था. 'ये दिल मांगे मोर' की पंच लाइन आपने किसी टीवी एड में जरूर सुनी होगी या आपकी जुबां पर भी ये अल्फाज जरूर आए होंगे. लेकिन साल 1999 के करगिल युद्ध में ये पंच लाइन देश के उस नायक की पहचान बन गई जिसकी कहानी आज भी करगिल की वादियों में जिंदा है. 26 जुलाई को देश में करगिल जीत की याद में विजय दिवस का जश्न मनाया जा रहा है लेकिन इस जश्न में जोश उस जंग के हीरो की कहानी भरती है जिसे देश, करगिल और दुश्मन पाकिस्तान शेरशाह (Shershah of Kargil war) के नाम से जानता है.
करगिल का शेरशाह, मां-बाप का दुलारा लव- विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल के पालमपुर में हुआ था. घुग्गर गांव के स्कूल टीचर जीएल बत्रा और मां कमलकांता बत्रा दो बेटियों के बाद एक बेटा चाहते थे. भगवान ने दोगुनी खुशियां उनकी झोली में डाल दीं और कमलकांता बत्रा ने जुड़वां बेटों को जन्म दिया, जो माता-पिता के लिए लव-कुश थे. विक्रम बड़े थे जिन्हें लव और छोटे भाई विशाल को कुश कहकर बुलाते थे. मां भी टीचर थी तो बत्रा ब्रदर्स की पढ़ाई की शुरुआत घर से ही शुरू हो गई थी. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की पढ़ाई के लिए वो चंडीगढ़ चले गए. स्कूल और कॉलेज के उनके साथी और टीचर आज भी उनकी मुस्कान, दिलेरी और उनके मिलनसार स्वभाव को याद करते हैं.
लाखों की सैलरी ठुकरा दी-विक्रम बत्रा का सेलेक्शन मर्चेंट नेवी में हांगकांग की एक शिपिंग कंपनी में हुआ था, ट्रेनिंग के लिए बुलावा भी आ चुका था लेकिन उन्होंने सेना की वर्दी को चुना. मर्चेंट नेवी की लाखों की तनख्वाह देश के लिए जान न्योछावर करने के जज्बे के सामने बौनी साबित हुई. विक्रम के पिता जीएल बत्रा कहते हैं कि गणतंत्र दिवस परेड में NCC कैडेट के रूप में हिस्सा लेना विक्रम का सेना की तरफ झुकाव का पहला कदम था. मर्चेंट नेवी के लाखों के पैकेज को छोड़ विक्रम बत्रा ने कुछ बड़ा करने की ठानी और 1995 में IMA की परीक्षा पास की.
"तिरंगा लहराकर आऊंगा या तिरंगे में लिपटकर"- विक्रम बत्रा यारों के यार थे वो दोस्तों के साथ वक्त बिताने का कोई मौका नहीं छोड़ते थे. करगिल की जंग से कुछ वक्त पहले विक्रम बत्रा अपने घर आए थे. तब उन्होंने अपने दोस्तों को एक कैफे में पार्टी दी थी. बातचीत के दौरान उनके एक दोस्त ने कहा कि तुम अब फौजी हो अपना ध्यान रखना. जिसपर विक्रम बत्रा का जवाब था ''चिंता मत करो, मैं तिरंगा लहराकर आऊंगा या फिर तिरंगे में लिपटकर आऊंगा लेकिन आऊंगा जरूर''
करगिल के 'शेरशाह' का दिल मांगे मोर- करगिल की जंग में विक्रम बत्रा का कोड नेम शेरशाह (Shershah of Kargil) था और इसी कोडनेम की बदौलत पाकिस्तानी उन्हें शेरशाह कहकर बुलाते थे. 5140 की चोटी जीतने के लिए रात के अंधेरे में पहाड़ की खड़ी चढ़ाई से दुश्मन की निगाहों से बचते हुए जाना था. विक्रम बत्रा ने अपने साथियों के साथ पहाड़ी पर कब्जा जमाए पाकिस्तानियों को धूल चटाई और उस पोस्ट पर कब्जा किया. जीत के बाद वायरलेस से बेस पर संदेश पहुंचाना था तो वायरलेस पर विक्रम बत्रा की आवाज गूंजी 'ये दिल मांगे मोर'.
लेफ्टिनेंट से कैप्टन बने विक्रम बत्रा-करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानियों ने ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा कर लिया था जहां से भारतीय फौज पर निशाना लगाना आसान था. करगिल युद्ध जीतने के लिए इन चोटियों पर वापस कब्जा करना जरूरी था. विक्रम बत्रा को उनके सीओ ने 5140 की चोटी पर कब्जा करने की जिम्मेदारी सौंपी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. विक्रम बत्रा उस वक्त देश के रियल हीरो बन गए जब उन्होंने करगिल युद्ध के दौरान 5140 की चोटी पर कब्जा करने के बाद 'ये दिल मांगे मोर' कहा. अगले दिन जब एक टीवी चैनल पर विक्रम बत्रा ने ये दिल मांगे मोर कहा तो मानो देश के युवाओं के रग-रग में जोश भर गया. करगिल पहुंचते वक्त विक्रम बत्रा लेफ्टिनेंट थे लेकिन 5140 की चोटी से पाकिस्तानियों का सफाया करने के बाद उन्हें जंग के मैदान में ही कैप्टन प्रमोट किया गया और अब वो थे कैप्टन विक्रम बत्रा.
तिरंगा भी फहराया और तिरंगे में लिपटकर भी आया- 5140 की चोटी फतह करने के बाद भारतीय फौज के हौसले और भी बुलंद हो गए. जिसकी एक सबसे बड़ी वजह थे कैप्टन विक्रम बत्रा. 5140 पर तिरंगा लहराने के बाद तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीपी मलिक ने खुद उन्हें फोन पर बधाई दी थी. इसके बाद मिशन था 4875 की चोटी पर तिरंगा फहराना. कहते हैं कि उस वक्त कैप्टन विक्रम बत्रा की तबीयत खराब थी लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने सीनियर्स से इस मिशन पर जाने की इजाजत मांगी.