धर्मशाला:तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने मैक्लोडगंज स्थित अपने निवास स्थान से वीडियो लिंक के माध्यम से ठिकसे रिनपोछे, लद्दाख बौद्ध संघ और लद्दाख गोनपा संघ के साथ अपने विचारों को सांझा किया.
इससे पहले लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष थुप्टेन त्सेवांग ने साष्टांग प्रणाम करते हुए संक्षिप्त परिचय दिया और कहा कि दो साल 2019 और 2020 के लिए, लद्दाख की यात्रा करने में असमर्थ रहे हैं और बौद्ध व गैर-बौद्ध भक्तों ने उन्हें याद किया है, इसलिए उन्होंने दलाई लामा से इस वर्ष लद्दाख आने का अनुरोध किया था, लेकिन फिर से व्यापक कोरोना वायरस महामारी और उससे जुड़े प्रतिबंधों के कारण यह संभव नहीं हो सका.
वहीं, अपने प्रवचन में दलाई लामा ने कहा कि ऐसे आध्यात्मिक गुरु को खोजो जो तुम्हे रक्षकों की उपस्थिति का आह्वान करा सकते हों. उन्होंने कहा मैं लद्दाख के वफादार आम लोगों और मठवासियों को प्रबोधन के पथ के लिए दीपकश सिखाने के लिए खुशी-खुशी सहमत हो गया हूं.
दलाई लामा ने कहा कि तिब्बत में हमने बुद्ध की शिक्षाओं के पहले और बाद के प्रसार के बीच अंतर किया एक निश्चित बिंदु पर, लैंग डार्मा के विरोध के बाद, बौद्ध धर्म का पतन हो गया. नतीजतन पश्चिमी तिब्बत में एक राजा को शिक्षण को पुनर्जीवित करने और संरक्षित करने के लिए कदम उठाने के लिए प्रेरित किया गया.
दलाई लामा ने कहा कि यह पाठ उन शुरुआती लोगों के लिए है जो व्यवस्थित रूप से अभ्यास करेंगे इसमें तीन प्रकार के व्यक्तियों, कम से कम, मध्यम और सर्वोच्च क्षमता के अभ्यासियों का उल्लेख है जो लोग अपने स्वभाव के अनुसार दूसरों की मदद करने की इच्छा रखते हैं. वे ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हैं और उन्हें सर्वोच्च क्षमता वाला कहा जाता है.
दलाई लामा ने कहा सभी अशांतकारी मनोभाव हमारे भीतर इस भ्रांति के कारण उत्पन्न होते हैं कि वस्तुओं का अस्तित्व स्वाभाविक है. हालांकि, जब उनकी जांच और विश्लेषण किया जाता है तो अंतर्निहित अस्तित्व का कोई निशान नहीं मिलता है, क्योंकि वे अन्य कारकों पर निर्भर होते हैं. यद्यपि कष्टदायी भावनाओं को दूर किया जा सकता है. वे ऐसे छाप छोड़ जाते हैं जो ज्ञान के लिए अवरोध के रूप में कार्य करते हैं उन्हें हटाए बिना हम सब कुछ वैसा ही नहीं जान सकते जैसा वह है.
ये भी पढ़ें-कांगड़ा: बोह गांव में NDRF का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी, अब भी 2 लोग लापता