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राष्ट्र स्तरीय होली में टूटी सदियों पुरानी परंपरा, पुजारी की चेतावनी की प्रशासन ने की अनदेखी - राष्ट्रीय स्तरीय होली उत्सव सुजानपुर

इस बार राष्ट्रीय स्तरीय होली उत्सव में सदियों पुरानी परंपरा टुट गई. हर बार सदियों से पूर्णमासी में ही होली उत्सव मनाया जाता था और रंग और गुलाल के साथ शोभायात्रा भी इसी मुहूर्त में निकाली जाती थी, लेकिन इस बार पुजारी की चेतावनी देने के बाद भी इसे नजरअंदाज किया गया है.

Sujanpur Holi festival 2020
राष्ट्रीय स्तरीय होली उत्सव सुजानपुर 2020

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Published : Mar 10, 2020, 5:48 PM IST

हमीरपुरः राष्ट्रीय स्तरीय होली उत्सव में जो हुआ उसे प्रशासन की नासमझी कहे या फिर महज व्यवसायिक लाभ के लिए बनाया गया व्यापारियों का दबाव. इस बार राष्ट्रीय स्तरीय होली उत्सव में सदियों पुरानी परंपरा टूट गई. पहली बार ऐसा हुआ कि पूर्णमासी के शुभ मौके को नजर अंदाज करते हुए मेला कमेटी राष्ट्रीय होली उत्सव सुजानपुर एवं उपायुक्त हमीरपुर की अगुवाई में ऐतिहासिक सुजानपुर चौगान मैदान में गुलाल उड़ा.

मान्यता है कि रियासतों के दौर से ही सुजानपुर में राजा संसार चंद लोगों से होली खेलने के लिए शुभ मुहूर्त का इंतजार करते थे और पूर्णमासी की बेला को इसमें तवज्जो दी जाती थी.

विद्वान पंडितों से सलाह मशवरा कर होली उत्सव का मुहूर्त निकाला जाता था, लेकिन इस बार सब नजरअंदाज हो गया. हालांकि प्राचीन मुरली मनोहर मंदिर के पुजारी रवि अवस्थी ने स्थानीय प्रशासन और मेला कमेटी के पदाधिकारियों को इस बारे चेताया भी था, लेकिन कृष्ण पक्ष में ही भद्रा के दौरान शोभायात्रा निकाली गई और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने ऐतिहासिक चौगान मैदान में लोगों के साथ खुब गुलाल भी उड़ाया.

वीडियो.

इस बड़ी चूक के सामने आने के बाद ईटीवी भारत के संवाददाता कमलेश भारद्वाज ने प्राचीन मुरली मनोहर मंदिर सुजानपुर के पुजारी रवि अवस्थी से विशेष बातचीत की और जाना कि पूर्णमासी में होली उत्सव मनाए जाने का क्या महत्व है.

पुजारी रवि अवस्थी ने कहा कि 8 पीढ़ियों से उनका परिवार मुरली मनोहर मंदिर में सेवाएं दे रहा है. हर बार सदियों से पूर्णमासी में ही होली उत्सव मनाया जाता था और रंग और गुलाल के साथ ही शोभायात्रा भी इसी मुहूर्त में निकाली जाती थी, लेकिन इस बार इसे नजरअंदाज किया गया है.

पूर्णमासी 9 मार्च रात 11बजे तक थी. महज अवकाश और व्यापारिक लाभ के व्यापारियों के दबाव में परंपरा को तोड़ देने के सवाल पर उन्होंने कहा कि इस बारे में उन्होंने स्थानीय अधिकारियों और मेला कमेटी को बताया था कि पूर्णमासी में ही यह त्योहार मनाया जाता है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.

जिला प्रशासन और मेला कमेटी की यह बड़ी चूक समाज के लिए सवाल छोड़ जाती है कि क्या महज एक अवकाश और व्यवसायिक लाभ के लिए परंपरा से समझौता किया जा सकता है??

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