हमीरपुर: सरहदों पर मां भारती की रक्षा करने वाले वीर सपूत अपने गांव में शासकीय और सामाजिक व्यवस्था से हार गए हैं. यही वजह है कि कारगिल युद्ध सहित 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई लड़ने वाले वीर सैनिकों वाला खोरड़ गांव आजादी के करीब 8 दशक बाद भी सड़क सुविधा से वंचित है. संयोग यह है कि यह गांव 6 महीने पहले मुख्यमंत्री के गृह विधानसभा क्षेत्र का हो गया है, लेकिन हालत बदले नहीं हैं.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के गृह विधानसभा क्षेत्र नादौन की गोइस पंचायत के खोरड़ गांव ग्रामीण सड़क सुविधा से वंचित है. थक हार कर सोमवार को गांव के आधा दर्जन के करीब पूर्व सैनिक अपने मेडल लौटने के लिए डीसी कार्यालय हमीरपुर पहुंचे. ऐसा नहीं है कि क्षेत्र के ग्रामीणों ने समस्या के समाधान के लिए प्रयास नहीं किए. ग्रामीणों ने एक दो बार नहीं बल्कि कई दफा शासन और प्रशासन के समक्ष सड़क निर्माण में पेश आ रही समस्या को रखा.
पूर्व में तीन बार डीसी कार्यालय से समस्या का समाधान का आश्वासन देकर यह ग्रामीण घर लौटे हैं. सोमवार को पूर्व सैनिक ग्रामीणों के साथ जब वर्तमान डीसी हमीरपुर हेमराज बैरवा से मिलने पहुंचे तो अहत होकर मेडल लौटाने की पेशकश कर डाली. पूर्व सैनिक की पत्नी अमृत कुमारी ने नम आंखों से अपने स्वर्गीय पति सुविधा उपदेश वर्मा सहित अन्य पूर्व सैनिकों के मेडल लौटाने की पेशकश की. इस पर DC हमीरपुर हेमराज बैरवा ने 2 दिन के भीतर समस्या का समाधान कर सड़क का निर्माण शुरू करवाने का आश्वासन ग्रामीणों को दिया.
'हर बार आश्वासन मिले, मरीजों को अस्पताल पहुंचने में आती है दिक्कत': हर बात प्रशासन के आदेश नजरअंदाज होने से निराश ग्रामीण एक बार फिर सोमवार को आश्वासन लेकर घर लौट गए. इस गांव में सड़क निर्माण के लिए बजट सैंक्शन होने के बाद एक बार लेप्स हो गया. दोबारा यहां पर बजट जारी हुआ, लेकिन जिला प्रशासन के तीन दफा आदेश करने के बावजूद सड़क निर्माण अधर में लटका है. ऐसे में प्रशासनिक और शासकीय व्यवस्था से त्रस्त पूर्व सैनिक अपनी मेडल लौटाने को विवश हो गए. ग्रामीणों का कहना है कि अक्सर जब कोई गांव में बीमार हो जाता है तो उसे पीठ पर उठाकर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है या फिर चारपाई का सहारा लेना पड़ता है.